नई दिल्ली: जब धार्मिक मान्यताओं की बात आती है तो इस पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए क्योंकि यह लोगों की परंपराओं से संबंध रखते है। दुनिया में बहुत सी चीजें अच्छाई और बुराई के दायरे में आती हैं, लेकिन इस दायरे में आस्था को लाना सही नहीं है क्योंकि यह लोगों की भावनाओं से बंधी होती है और भावनाएं न तो अच्छी होती हैं और न ही बुरी, वे परे होती हैं. ऐसी ही एक मान्यता सनातन धर्म में महिलाओं से जुड़ी है.
आपने देखा होगा कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाया जाता है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में केवल पुरुष ही शामिल होते हैं. जी हाँ, श्मशान घाट में महिलाओं का जाना वर्जित है. इसके अलावा, केवल पुरुष ही लाश को दाग देते हैं, इसमें भी महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं. आज हम आपको इन परंपराओं के पीछे का मुख्य कारण बताने जा रहे हैं.
चूंकि ये परंपराएं लंबे अरसे से चली आ रही हैं, इसलिए इसके पीछे की सोच भी उसी समय की है. आपको बता दें, पहला कारण यह था कि जब पुरुष श्मशान घाट जाते थे तो किसी को घर की साफ-सफाई का ध्यान रखना पड़ता था और पहले के जमाने में घर का काम महिलाएं ही किया करती थीं, इसलिए यह काम भी उन्हें ही करना पड़ता था.
श्मशान भूमि का नज़ारा कई बार बेहद डरावना हो सकता है। अपने प्रियजनों को चिता पर जलते हुए देखना और फिर उनकी हड्डियों को लकड़ी से तोड़ना एक बहुत ही बुरा अनुभव हो सकता है. पहले माना जाता था कि महिलाओं का दिल कमजोर होता है, अगर वे ऐसे दृश्य देखेंगी तो उनके दिल और दिमाग पर गंभीर असर पड़ेगा। ऐसे में यह भी एक कारण है कि उन्हें श्मशान घाट क्यों नहीं ले जाया जाता था.
प्राचीन काल में यह भी माना जाता था कि महिलाओं के लंबे बाल श्मशान में मौजूद नकारात्मकता या बुरी आत्माओं को आकर्षित करते हैं. आज भी ऐसा कहा जाता है कि भूत-प्रेत जल्द ही खुले या लंबे बालों की तरफ आकर्षित होते हैं और इसके जरिए इंसान में प्रवेश कर जाते हैं. इसी वजह से महिलाओं को श्मशान घाट नहीं जाने दिया जाता था. साथ ही यह भी कहा जाता है कि पुरुष खुद को शुद्ध करने के लिए अपना मुंडन करवा लेते थे, लेकिन महिलाएं ऐसा नहीं कर सकती थीं. इसलिए औरतों को शमशान नहीं जाने दिया जाता था.
इसके पीछे पहला कारण तो यह है कि जब आपको श्मशान घाट जाने की मनाही है तो आप अपने आप को दाग भी नहीं लगा पाओगे। हमने आपको ऊपर बताया कि यह क्यों वर्जित है. इसके अलावा प्राचीन काल में किसी भी दंपत्ति के लिए संतान का होना आवश्यक माना जाता था क्योंकि संतान होने से ही माता-पिता को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है. जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाना ही मोक्ष कहलाता है. ऐसे में यदि पुत्र के स्थान पर पुत्री या स्त्री दाग दें तो मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष व लोक मान्यताओं पर आधारित है. इस खबर में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए इनख़बर किसी भी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है.)
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