एक ऐसा मंदिर जहां योनि की होती है पूजा, प्रसाद में मिलता मासिक धर्म का खून

Navratri: आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि हम 9 दिनों तक देवी और दशहरा से जुड़ी हुई अलग-अलग कहानी लेकर आएंगे। पहले दिन हम गुवाहाटी स्थित कामाख्या पीठ के बारे में जानेंगे, जहां पर स्त्री योनि की पूजा की जाती है… योनि की […]

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एक ऐसा मंदिर जहां योनि की होती है पूजा, प्रसाद में मिलता मासिक धर्म का खून

Pooja Thakur

  • October 3, 2024 8:35 am Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

Navratri: आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि हम 9 दिनों तक देवी और दशहरा से जुड़ी हुई अलग-अलग कहानी लेकर आएंगे। पहले दिन हम गुवाहाटी स्थित कामाख्या पीठ के बारे में जानेंगे, जहां पर स्त्री योनि की पूजा की जाती है…

योनि की होती है पूजा

मां कामाख्या का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह असम के गुवाहाटी से करीब 10 किमी दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर मां कामाख्या 64 योगिनियों और दस महाविद्याओं के साथ विराजमान हैं। यह दुनिया की इकलौती ऐसी शक्तिपीठ है, जहां पर दसों महाविद्या यानी कि भुवनेश्वरी, बगला, छिन्नमस्तिका, काली, तारा, मातंगी, कमला, सरस्वती, धूमावती और भैरवी विराजित हैं।

बढ़ जाती है मंदिर की शक्ति

नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर में दर्शन के लिए देशभर से लोग आते हैं। यहां पर मां कामाख्या की पूजा तंत्र साधना के लिए की जाती है। उन्हें तांत्रिकों की देवी माना जाता है। इस वजह से यहां पर काला जादू भी किया जाता है। इस मंदिर में मादा जानवरों की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। इस मंदिर में पीरियड्स को पवित्र माना जाता है क्योंकि माता तीन दिनों तक मासिक धर्म में होती हैं। इन दिनों में मंदिर की शक्ति और बढ़ जाती है।

लाल हो जाता ब्रह्मपुत्र का पानी

ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती का गर्भ और योनि गिरी थी। हर साल जून महीने में माता मासिक चक्र में होती हैं। इस दौरान यहां पर अंबुबाची मेला लगता है। तीन दिनों के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। यह मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां मौजूद ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग में रंग जाता है।

मासिक धर्म का खून प्रसाद

देवी के सामने मंदिर में सफ़ेद कपड़ा बिछाया जाता है। यह कपड़ा अंबुबाची वस्त्र कहलाता है। तीन दिन बाद यह कपड़ा माता के मासिक धर्म के खून से लाल हो जाता है। फिर इसे प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है। यहां पर नागा साधु कपड़े पहनते हैं क्योंकि वो मां के सामने नग्न अवस्था में नहीं रह सकते। उनका कहना होता है कि देवी कामाख्या उनकी मां हैं तो वो उनके सामने नंगे नहीं रह सकते।

 

 

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