नई दिल्ली : पहले सरोवर का नाम शंखोद्धार सरोवर था, उसे शंख सरोवर कहते हैं। इसके बारे में यह कहा जाता है कि भगवान शिव ने नाराज होकर श्राप दिया था की जो भी शंख सरोवर में नहाएगा, वह स्त्री बन जाएगा। यह प्रसंग शिव पुराण और कुछ अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी आया हैं।
सरोवर को श्राप क्यों मिला
भगवान शिव की नाराजगी की भी वजह थी। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती शंखोद्धार सरोवर के पास आराम कर रहे थे। वहाँ एक शंखासुर नाम का रक्षा ने उन्हें परेशान किया। भगवान शिव ने उस राक्षस का वध किया। उसका शंख (कौड़ी) उस सरोवर में गिर गया, तब नाराज होकर भगवान शिव ने सरोवर को श्राप दिया कि इसमें जो नहाएगा वह स्त्री बन जाएगा।
वरदान से वह बने पुरुष
शंखोद्धार सरोवर में युधिष्ठिर स्नान करके बाहर आया, उसका शरीर एक सुंदर स्त्री में बदल गया। तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव की तपस्या की। उसकी इच्छा स्वीकार हो गई। भगवान शिव ने उसे वरदान दिया ताकि वह वापस पुरुष रूप में आ सके। इस तरह वह फिर से पुरुष बन गया।
यह सरोवर कहा है
पौराणिक कथाओं में इस झील को हिमालय क्षेत्र में स्थित माना जाता था। शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। हिमालय क्षेत्र में इसकी सटीक भौगोलिक स्थिति के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसे अक्सर एक दैवीय या आध्यात्मिक स्थान के रूप में वर्णित किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि यह हिमालय में किसी दुर्गम या गुप्त स्थान पर स्थित है। कुल मिलाकर यह एक रहस्यमयी झील बनी हुई है।
बहुला सरोवर
दूसरी झील है बहुला, महाभारत में इसे काम्यक वन में स्थित बताया गया है। इस झील के बारे में यह भी मान्यता थी कि इसमें स्नान करने से पुरुष स्त्री बन जाता है।
अर्जुन ने नहीं मानी थीं बात
महाभारत के अनुसार एक बार अर्जुन और उनके साथी इस वन में डेरा डाले हुए थे। घूमते-घूमते उन्होंने सुना कि बहुला झील में स्नान करने से पुरुष स्त्री बन जाता है। इस बात की सच्चाई जानने के लिए अर्जुन ने उस झील में स्नान किया। तुरंत ही वे एक सुंदर स्त्री में बदल गए।
अर्जुन फिर से पुरुष कैसे बन गए
यह देखकर उनके साथी हैरान रह गए। उन्होंने अर्जुन को फिर से पुरुष बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। अंत में अर्जुन ने खुद ही अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग करके अपनी पूर्व अवस्था को फिर से हासिल कर लिया। आजकल इस झील का कोई निशान नहीं है, लेकिन इसकी कहानी महाभारत में आज भी जीवित है। इस कहानी का वर्णन महाभारत के वन पर्व में किया गया है।
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