नई दिल्ली. गुरुवार बैकुंठ चतुर्दशी है. बैकुंठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन भी कहा जाता है. इस त्योहार को भगवान शिव और विष्णु के उपासक बहुत आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं. वैसे तो ये पूजा और त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन खास तौर पर यह उज्जैन और वाराणसी यानि बनारस में मनाया जाता है. इस त्योहार के विशेष अवसर पर भव्य आयोजन किया जाता है. उज्जैन में इस दिन झांकियां निकाली जाती है. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु जी के मिलन का उत्साह मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस त्योहार को शिवाजी और उनकी माता जिजाबाई ने भी की थी.
बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और विष्णु जी की यात्रा निकाली जाती हैं. इस दौरान खूब ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा के समय विष्णु पाठ और कहानी पढ़ी जाती है. कहीं कहीं इस मौके पर नदी में स्नान करने का चलन भी है. ऐसा करने से सभी के पाप धुल जाते हैं. पूरे कार्तिक मास में भगवान शिव और विष्णु जी को कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं. और गंगा किनारे दीपदान किया जाता है. दरअसल दीपदान का महत्व पूरे कार्तिक मास में होता है.
बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा
कहा जाता है कि भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले गए थे. शिव की अराधना करने के लिए उन्होंने भोलेनाथ को हजार कमल के फूल चढ़ाएं थे. इसके बाद भगवन विष्णु भोले नाथ की उपासना में लीन हो जाते हैं. काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु अपनी आंखे खोलते हैं तो पाते हैं कि उनके कमल के सभी गायब हो जाते हैं. इससे निराश होकर वो अपनी एक आंख जिसे कमल नयन कहा जाता है. उसे शिव को अर्पित कर देते हैं, जिसे देखकर भगवान प्रसन्न हो जाते हैं. इसके बाद शिव उनकी सच्ची उपासना को देखते हुए उनकी कमल नयन वापस करते हैं और उन्हें भेंट में सुदर्शन चक्र देते हैं. तभी से इस को वैकुण्ड चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.
बैकुंठ चतुर्दशी तिथि
2 नवंबर 2017- मंगलवार
बैकुंठ चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
बैकुंठ चतुर्दशी का प्रारंभ- सुबह 4.11बजे से- 2.नवंबर-2017
वैकुण्ड चतुर्दशी समाप्त- रात 1.36 तक, 3-नवंबर-2017
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