तुलसी विवाह: इस वजह से तुलसी की शादी शालीग्राम से हुई और ऐसे बनीं वृंदा से तुलसी
कार्तिक माह में कई त्योहार मनाए जाते हैं. इस माह को हिंदू परंपरा के अनुसार बेहद पवित्र महीना भी माना जाता है. ये महीना शरद पूर्णिमा से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. इस माह की एकादशी को तुसली विवाह होता है. कार्तिक माह में तुलसी की पूजा और दीप दान का विशेष महत्व होता है.
October 30, 2017 2:14 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली. कार्तिक माह में कई त्योहार मनाए जाते हैं. इस माह को हिंदू परंपरा के अनुसार बेहद पवित्र महीना भी माना जाता है. ये महीना शरद पूर्णिमा से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. इस माह की एकादशी को तुसली विवाह होता है. कार्तिक माह में तुलसी की पूजा और दीप दान का विशेष महत्व होता है. तुलसी विवाह को देवउठनी ग्यारस या देव प्रबोधनी एकादशी भी कहते हैं. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी के साथ तुलसी जी का विवाह होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि तुलसी को वृंदा नाम से क्यों पुकारा जाता है. दरअसल तुलसी के इस नाम के पीछे एक कथा प्रचलित है.
तुलसी विवाह कथा
पहले तुलसी की का नाम वृंदा ही था. हिंदू कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा रखा गया था. ये कन्या शुरू से ही भगवान विष्णु की परम भक्त रही. लेकिन जैसे ही वृंदा बड़ी हुई उसके पिता ने उसका विवाह एक समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए राक्षस जलधंर से कर दिया. ये राक्षस बेहद शक्तिशाली था. जैसे ही इस राक्षस का विवाह विष्णु की परम भक्त वृंदा के साथ हुआ तब वह राक्षस और शाक्तिशाली और आक्रमक हो गया. वृंदा की भक्ति और पूजा पाठ की वजह से राक्षस जलंधर को कोई हरा नहीं पा रहा था. लेकिन एक बार जलंधर ने देवताओं को भी अपना निशाना बना लिया. और सभी देवतागण जलंधर को मारने में असमर्थ रहे. तभी सभी देवता भगवान विष्णु की मदद लेने पहुंचे. तभी सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और कहा कि है ईश्वर हमारी सहायता करें और राक्षस जलंधर का अंत करें. सभी देवाताओं की बात सुनकर भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलांधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया. इस वजह से राक्षस जलंधर की शक्ति कम हो गयी और वह युद्ध में मारा गया. लेकिन जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो वो निराश और दुखी हो गई. तब वृंदा ने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया.
जब सभी देवताओं ने देखा कि इस श्राप से भगवान विष्णु पत्थर की मूरत बन गए हैं तो सभी देवताओं के साथ मां लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना याचना की. तब वृंदा ने अपना श्राप तो वापस लिया लेकिन वो जलंधर के शव के साथ सती हो गई. इसके बाद उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया. तभी भगवान विष्णु ने खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा. भगवान विष्णु के रूप का नाम शालिग्राम पड़ा और तब से विष्णु का रूप शालिग्राम के नाम से तुलसी जी को पूजा जाता है. कार्तिक महीने की एकादशी को तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है.
तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस, देव प्रबोधनी एकादशी तिथि
ये त्योहार दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है. इसे तुलसी विवाह के रूप में भी जाना जाता है. ये हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष ग्यारस के दिन किया जाता है. इस साल देवउठनी ग्यारस 31 अक्टूबर और 1 नवंबर 2017 को है.