देवप्रबोधनी एकादशी 2017 का है खास महत्व, व्रत रखने से मिलता है विशेष फल
प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी आती हैं, हर माह जो एकादशी पड़ती हैं, जी हां एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष की एकादशी. बता दें कि कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व होता है, इसे देवप्रबोधनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
October 28, 2017 6:31 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली : प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी आती हैं, हर माह जो एकादशी पड़ती हैं, जी हां एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष की एकादशी. बता दें कि कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व होता है, इसे देवप्रबोधनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. आज से ठीक दो दिन बाद यानी की 31 अक्टूबर को देवप्रबोधनी एकादशी या देव उठानी एकादशी आ रही है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चार महीने शयन के बाद भगवान विष्णु जगते हैं. शास्त्रों में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि देवप्रबोधनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के बाद देवता भी उनकी पूजा करते हैं.
एक कारण ये भी है कि इस दिन लोगों को भगवान विष्णु के जागने पर उनकी पूजा करनी चाहिए. सिर्फ इतना ही नहीं, पुराणों में ऐसा भी कहा गया है कि जो लोग देवप्रबोधनी एकादशी का व्रत रखते हैं उनकी कई पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करने के योग्य बन जाती हैं.
शास्त्रों के मुताबिक, देवप्रबोधनी एकादशी और देव उठानी एकादशी वाले दिन गन्ने का मंडप सजाना ताहिए और फिर मंडप के अंदर विधिवत रूप से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए. एक बात जो आप लोगों को विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए वो ये है कि भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाएं. गौर करने वाली बात ये है जो आपको याद रखनी चाहिए वह ये है कि इस दिन जिस भी व्यक्ति ने व्रत रखा हो उसे स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. बता दें कि ऐसा करने से मांगलिक कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती है और पूरा साल सुखमय व्यतीत होता है.
देव प्रबोधनी एकादशी व्रत कथा
शंखासुर नामक एक बलशाली असुर था, इसी असुर ने तीनों लोकों में काफी उत्पात मचा रखा था. देवाताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब भगवान विष्णु शंखासुर से युद्घ करने गए. शंखासुर और भगवान विष्णु का युद्घ कई वर्षों तक होता रहा और अंत: में शंखासुर मारा गया. युद्घ करते हुए भगवान विष्णु काफी थक गए अतः क्षीर सागर में अनंत शयन करने लगे. चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान की निद्रा टूटी थी. देवताओं ने इस अवसर पर विष्णु भगवान की पूजा की थी. इस तरह देव प्रबोधनी एकादशी व्रत और पूजा का विधान शुरू हुआ था.