नई दिल्ली. कार्तिक माह में कई बड़े त्योहार मनाए जाते हैं. कार्तिक माह में दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, चित्रगुप्त पूजा जैसे कई बड़े त्योहार मनाए जाते हैं. कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देवउठनी ग्यारस होती है. हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से सभी शुभ कार्य, शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार जैसे कार्य करना बेहद शुभ होता है. इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है. ये एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद आती है.
देवउठनी ग्यारस का मतलब होता है कि देवों का उठना. ये एकादशी साल भर की एकादशी में से इसीलिए सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस दिन से चार महीने पहले भगवान विष्णु व अन्य देवता गण क्षीरसागर में जाकर सो जाते हैं. इसी वजह से देव शयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी के बीच में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता हैं. देवउठनी एकादशी से देव उठते हैं. साथ ही जब इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद सो कर जगे थें तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है. इसीलिए मान्यता है कि तुलसी और विष्णु जी के शालिग्राम रूप का विवाह वाले को कन्यादान करने का पुण्य प्राप्त मिलता है. इसे देव प्रबोधनी एकादशी या देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है.
तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस, देव प्रबोधनी एकादशी तिथि
ये त्योहार दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है. इसे तुलसी विवाह के रूप में भी जाना जाता है. ये हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष ग्यारस के दिन किया जाता है. इस साल देवउठनी ग्यारस 31 अक्टूबर और 1 नवंबर 2017 को है.
पूजा विधि
इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना होता है. इस दिन व्रत करने की परंपरा है. स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. वैसे तो इस दिन नदी में स्नान करने को बेहद शुभ माना जाता है. ये व्रत एकादशी को शुरू होता है और द्वादश को खोला जाता है. इस दिन तुलसी की पूजा और पूरी विधि विधान के साथ विष्णु जी के रूप शलिग्राम जी से उनका विवाह संपन्न करवाया जाता है. इस दिन तुलसी की पूजा में लोग कन्यादान करते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार संसार में यदि सबसे बड़ा कन्यादान है तो वह है कन्यदान. इसीलिए इस दिन लोगों को कन्यादान करने का सौभाग्य भी प्राप्त होता है.
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