आखिर क्यों की जाती है चित्रगुप्त पूजा
कायस्थ लोग ब्रह्मा जी के पुत्र भगवान चित्रगुप्त की पूजा आज के दिन करते हैं. धार्मिक मान्यता के मुताबिक महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी भगवान चित्रगुप्त की पूजा की थी और इसी से चित्रगुप्त खुश होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया था. ऐसी मान्यता है भगवान चित्रगुप्त धर्मराज की सभा में पृथ्वीवासियों के पाप पुण्य का लेखा-जोखा करते हैं. चित्रगुप्त की पूजा करने से गरीबी और अशिक्षा दूर होती है. यही वह खास दिन होता है जब कायस्थ लोग लिखने और पढ़ने का काम नहीं करते हैं.
पूजन का शुभ मुहूर्त
बता दें कि दोपहर 12 बजे तक ही चित्रगुप्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त है. इसलिए सुबह उठकर सबसे पहले पूजा स्थान को साफ़ कर एक चौकी पर कपड़ा विछा कर श्री चित्रगुप्त जी का फोटो स्थापित करें यदि चित्र उपलब्ध न हो तो कलश को प्रतीक मान कर चित्रगुप्त जी को स्थापित करें.
इस तरह से करें भगवान चित्रगुप्त की पूजा तभी मिलेगा फल
सबसे पहले दीपक जला कर चित्रगुप्त जी को चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें. फल, मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल )और पान सुपारी का भोग लगायें. इसके बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम, दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के समक्ष रखें. अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर एप्पन (चावल का आटा, हल्दी, घी, पानी ) व रोली से स्वस्तिक बनायें. उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः, श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री शिवाय नमः आदि.
चित्रगुप्त पूजन मंत्र
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले .
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ..
चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं .
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते
श्री चित्रगुप्त जी की आरती –
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम, शरणागतम|
जय पूज्य पद पद्मेश तव शरणागतम, शरणागतम||
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबंधु कृपानिधे |
कर्मेश तव धर्मेश तव शरणागतम, शरणागतम||
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो |
जय श्याम तन चित्रेश तव शरणागतम, शरणागतम||
पुरुषादि भगवत् अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय |
जय शक्ति बुद्धि विशेष तव शरणागतम, शरणागतम||
जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के |
जय शांतिमय न्यायेश तव शरणागतम, शरणागतम||
तव नाथ नाम प्रताप से, छूट जाएँ भय त्रय ताप से |
हों दूर सर्व क्लेश तव शरणागतम, शरणागतम||
हों दीन अनुरागी हरि, चाहें दया दृष्टि तेरी |
कीजै कृपा करुणेश तव शरणागतम, शरणागतम||
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