दिवाली 2017: भारत के इन दो विदेशी शासकों ने लॉन्च किया था मां लक्ष्मी की तस्वीर वाला सिक्का
दिवाली के माहौल में आप में से अधिकतर मां लक्ष्मी की पूजा करेंगे. ऐसे में ये जानना आपके लिए वाकई में बेहद दिलचस्प होगा कि देश पर राज करने वाले एक नहीं बल्कि दो-दो विदशी शासकों ने भारत में मां लक्ष्मी की तस्वीर वाला सिक्का लॉन्च किया था. इन शासकों में से एक तो मुस्लिम शासक था, उसका नाम देश में कोई मुसलमान भी आदर के साथ नहीं लेता. दूसरा एक इंडो यूनानी शासक था, भारत में सबसे खरे सोने के सिक्के चलाने का श्रेय इतिहास में उसके नाम है. ये दो शासक थे कुषाण शासक कनिष्क और मोहम्मद गौरी.
October 18, 2017 5:43 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली. दिवाली के माहौल में आप में से अधिकतर मां लक्ष्मी की पूजा करेंगे. ऐसे में ये जानना आपके लिए वाकई में बेहद दिलचस्प होगा कि देश पर राज करने वाले एक नहीं बल्कि दो-दो विदशी शासकों ने भारत में मां लक्ष्मी की तस्वीर वाला सिक्का लॉन्च किया था. इन शासकों में से एक तो मुस्लिम शासक था, उसका नाम देश में कोई मुसलमान भी आदर के साथ नहीं लेता. दूसरा एक इंडो यूनानी शासक था, भारत में सबसे खरे सोने के सिक्के चलाने का श्रेय इतिहास में उसके नाम है. ये दो शासक थे कुषाण शासक कनिष्क और मोहम्मद गौरी.
कुषाण शासक इंडो यूनानी थे. गांधार से लेकर मथुरा तक इनका राज था. इनमें सबसे मशहूर शासक हुआ है कनिष्क. कनिष्क को भारत में राज करने या लूटपाट करने आए विदेशियों के बीच इज्जत की नजर से देखा जाता है. मथुरा म्यूजियम में रखी उस वक्त की कई मूर्तियां देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वास्तुकला और मूर्तिकला का कितना विकास उसके राज में हुआ होगा. शिव, बुद्ध और कृष्ण की तस्वीरों वाले तमाम सिक्के कनिष्क के समय के मिले हैं. उसने बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध परिषद की भी कश्मीर में अध्यक्षता की थी. अकबर से पहले अगर किसी विदेशी का नाम भारतीय धर्मों के आपसी तालमेल की कोशिशों के लिए जाना जाता है तो वो था कनिष्क.
कनिष्क का शासन काल मौर्य़ा वंश के ठीक बाद का और गुप्त वंश के ठीक पहले का है. यानी पहली और दूसरी सदी का यानी आज से करीब 1800-1900 साल पहले का. उसके बाद आए गुप्त वंश के तकरीबन हर राजा ने मां लक्ष्मी की तस्वीर वाले सिक्के चलाए, चाहे वो समुद्रगुप्त हो या फिर चंद्रगुप्त द्वितीय हो. लेकिन उससे पहले के मौर्य शासकों के सिक्के बनाने की तकनीक में किसी के चेहरे शामिल नहीं हो पाए थे. कुषाण शासको ने पहली बार चेहरों को सिक्कों पर उकेरना शुरू कर दिया. खुद कनिष्क का चेहरा सिक्कों पर मिलता है. साथ में बुद्ध, कृष्ण औऱ शिव की आकृतियां भी मिलती हैं. ऐसे ही एक सिक्का इस तरह का मिला है, जिस पर मिली आकृति कुछ विद्वानों ने मां लक्ष्मी की मानी है.
इसे अर्डोक्शो प्रकार का सिक्का कहा जाता है. दरअसल अर्डोक्शो कुषाण देवी थी, जो धन और समृद्धी की देवी थी. सिक्के पर तस्वीर में भी उसके हाथ अनाज की फलियां दिखाई गई हैं. चूंकि यूनानियों के देवता हेराक्लीज को श्रीकृष्ण माना जाता है. उनके कालिया वध और गोवर्धन परिवर्तन उठाने की तस्वीरें वहां भी मिलती हैं. उसी तरह विद्वानों का मानना है कि अर्डोक्शो भी मां लक्ष्मी ही थीं. जैसे कुषाणों के सिक्कों पर कृष्ण, शिव और बुद्ध की तस्वीरों के साथ अलग-अलग यूनानी नाम लिखे हुए हैं. वैसे ही मां लक्ष्मी के सिक्के पर अर्डोक्श लिखा हुआ है.
इसी तरह दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दिल्ली पर काबिज होने वाले मौहम्मद गौरी ने भी मां लक्ष्मी का ही सिक्का शुरू किया था. हालांकि गौरी जीतने के बाद बहुत कम समय के लिए ही दिल्ली में रुका था. अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को गद्दी पर बैठाकर लौटने लगा था. रास्ते में मारा गया, फिर भी इस सिक्के का शुरू होना एक चौंकाने वाली बात थी. इतिहास के कई जानकारों ने इस बात का खंडन तो नहीं किया कि ये सिक्का मोहम्मद गौरी ने नहीं लांच किया था, लेकिन वो ये मानते हैं कि पिछले किसी शासक द्वारा तैयार ये सिक्का रहा होगा और उसे वो लांच नहीं कर पाया होगा. क्योंकि उस सिक्के में जो मां लक्ष्मीजी की बैठने की मुद्रा हैं ठीक वैसी ही है जैसे गुप्त, कलचुरी या चोल शासकों के सिक्कों में थी.