नई दिल्ली. आज छोटी दिवाली है. जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. नरक चतुर्दशी के मौके पर मृत्यु के देव यमराज की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी को नरक चौद, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना हैं. कहा जाता है कि नरकासुर के वध के बाद लोगों ने इस दिन को त्योहार के रूप में मनाया था. इस दिन जश्न मनाते हुए लोगों ने दीये जलाए थे, तब ही से दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के रूप में मनाए जाने की परंपरा चलती आ रही है.
नरक चतुर्दशी पूजा विधि
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठने का महत्व होता है. इस दिन तेल से नहाया जाता है. नहाने के पश्चात सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए. इसके बाद भगवान कृष्ण की अराधना की जाती है. पूजा के समय फल-फूल धूप जलाकर अर्चना करें. और शाम को घर की दहलीज पर 5 या 7 दीप जलाएं.
नरक चतुर्दशी कथा
कहा जाता है कि नरकासुर नाम का एक राक्षस राजा था. उसने देवी-देवताओं और मनुष्यों को बहुत तंग कर रखा था. इतना नहीं उसने गंधर्वों और देवों की 16000 अप्सराओं को कैद करके रखा हुआ था. एक बार नरकासुर अदिति के कर्णाभूषण उठाकर भाग गया था. सभी देवतागण भगवान इन्द्र के पास रक्षा करने की याचना करने पहुंचे. इंद्र की प्रार्थना पर भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर की नगरी पर अपनी पत्नी सत्यभामा और साथी सैनिकों के साथ भयंकर आक्रमण कर दिया.
इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने मुर, हयग्रीव और पंचजन आदि राक्षसों का संहार कर दिया. इसके बाद कृष्ण ने थकान की वजह से क्षण भर के लिए अपनी आँखें बन्द कर ली. तभी नरकासुर ने हाथी का रूप धारण कर लिया और कृष्ण पर हमला करने आ गया. सत्यभामा ने उस असुर से लोहा लिया और नरकासुर का वध किया. इसके बाद सोलह हजार एक सौ कन्याओं को राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया गया. इसलिए भी यह त्योहार मनाया जाता है. तभी से इसका नाम नरक चौदस पड़ा.
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