नई दिल्ली. दिवाली पूजा के अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष पर गोर्वधन पूजा की जाती है. हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई थी. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र भगवान का घमंड तोड़ा था. तभी से यह परंपरा आज भी चलन में हैं. 20 अक्टूबर यानि आज देश में गोवर्धन पूजा की जा रही है. गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है. इस दिन गेहूं, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोज तैयार किए जाते हैं और इन्हें भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है.
गोवर्धन पूजा की कथा
कहा जाता है कि इंद्र देवता को अपनी शक्तियों पर घमंड था. तब भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों और अपनी मां को एक पूजा-अर्चना करते हुए देखा. तभी मइया यशोदा ने लड्डू गोपाल को बताया कि वो आज भगवान इंद्र देव की पूजा कर रहे हैं. कृष्ण के पूछने पर मां यशोदा ने बताया कि हम इंद्र देव वर्षा करते हैं. उन्हीं की देन बारिश से हमारा जीवन यापन हो पाता है. यशोदा मैया ने बताया कि यदि बारिश न हो तो घास, धान, अनाज न हो. साथ ही सबसे हमारी गइया क्या खाएगी अगर वर्षा न हो तो. तभी बड़े नटखट अंदाज में कृष्ण जी बोले, लेकिन मैया हमारी गाय तो गोवर्धन पर्व त पर घास चरती है. तो हमारे लिए वही पूजनीय होना चाहिए. इंद्र देव तो घमंडी हैं वह कभी दर्शन नहीं देते हैं.
तभी से कृष्ण की बात मानते हुए सभी ब्रजवासियों ने इन्द्रदेव के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की. लेकिन इस बात पर क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. जब देखा कि पूरा नगर इस वर्षा से नष्ट हो रहा है तब सभी ब्रजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगें. तब कृष्ण जी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी उंगली पर उठा लिया. लेकिन यह देख कर इंद्र देव और क्रोधित हो गए. तभी श्रीकृष्ण ने उनका घमंड तोड़ा. जब काफी समय तक इंद्र देव भारी वर्षा करते रहे और देखा कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं है. तभी वह ब्रह्मा जी के पास गए तब उन्हें ज्ञात हुआ की श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार हैं. बस फिर क्या था. फिर इंद्र देव ने श्री कृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा याचना करने लगें. इसके बाद इन्द्र देव ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया. तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा कायम है. मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं.
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