नई दिल्लीः शुक्रवार को देशभर में गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है. गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव दिवाली 2017 के दूसरे दिन मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में 56 तरह के भोग लगाए जाते हैं. केवल इतना ही नहीं इस दिन गोवर्धन पर्वत की भी पूजा की जाती है. इस दिन गोवर्धन पूजा वाले दिन खरीफ फसलों से प्राप्त अनाज से बने पकवान तथा सब्जियां बनाकर भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु प्रसन्न होने पर अपनी कृपा सदा घर पर बनाए रखते हैं तथा हर प्रकार की सुख-शांति रहती है. इस उत्सव को वैसे तो देश-विदेश के सभी मंदिरों में मनाया जाता है लेकिन ब्रज क्षेत्र में इस दिन दीपावली से भी अधिक उल्लास एवं रौनक होती है.
गोर्वधन पूजा के प्रतीक के रूप में गोधन यानी गाय की पूजा की जाती है. गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है. देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का भी वास होता है.
गोवर्धन पूजा की तिथि और मुहूर्त
इस बार गोवर्धन पूजा 20 अक्टूबर, 2017 यानी शुक्रवार के दिन की जाएगी. गोवर्धन पूजा के मुहूर्त की बात करें तो इस बार प्रातःकाल मुहूर्त 6:37 से 8:55 मिनट तक और सायंकाल मुहूर्त 3:50 से 6:08 मिनट तक रहेगा. इसके बीच में गोवर्धन पूजा करने का सबसे अच्छा मौका रहेगा.
गोवर्धन पूजन विधि
उत्तर भारत में दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते हैं. इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है. गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है. गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदार्थ के अलावा अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल, अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें ‘छप्पन भोग’ कहते हैं, का भोग लगाया जाता है. ‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में भी बताया गया है.
क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता. वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है. इसलिए इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए. इसके बाद इंद्र ने गुस्से में आकर ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, मगर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया. सभी ब्रजवासी पूरे सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे थे. इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरु हो गया और यह परंपरा आज भी जारी है.
गोवर्धन पूजा से जुड़ी अन्य बातें
ऐसा माना जाता है कि अगर गोवर्धन पूजा के दिन कोई दुखी है तो वह वर्ष भर दुखी रहेगा. इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए. इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिए, इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दरिद्रता का नाश होता है. इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरणों में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह पूरे साल भर सुखी और समृद्ध रहता है. महाराष्ट्र में यह दिन बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है. वामन जो भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है. यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बालि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं. गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नव वर्ष के दिन से एक दिन पहले मनाया जा सकता है. यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है.