नई दिल्ली: देश भर में आज महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है. महर्षि वाल्मीकि भारतीय महाकाव्य रामायण के रचयिता हैं. धर्म-ग्रन्थ में माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत के पहले श्लोक की रचना की थी. महर्षि वाल्मीकि के काव्य रचना की प्रेरणा के बारे में उन्होंने खुद बताया है. दरअसल महर्षि एक बार क्रौंच पक्षी के मैथुनरत जोड़े को निहार रहे थे, जोड़ा प्रेम में लीन था तभी बहेलिये ने उनमें से एक पक्षी को तीर मार दिया. तीर लगते ही उसकी मौत हो गई. महर्षि ये पूरी घटना देख रहे थे, वो बहुत क्रोधित हुए. इतना क्रोधित हुए कि उनके मुख से एक श्लोक फूटा पड़ा, जिसे संस्कृत का पहला श्लोक माना जाता है. वो श्लोक इस प्रकार है.
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वगम: शाश्वती: समा: ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम् ।।
महर्षि बनने से पहले लूटपाट करते थे वाल्मीकि
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था. रत्नाकर अपने परिवार का पालन-पोषण के लिए दूसरे से लूटपाट करते थे. एक बार उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई. रत्नाकर उन्हें भी लूटने का प्रयास किए. नारद जी ने रत्कानर से कहा कि आप ये काम क्यों और किसके लिए करते हो? रत्नाकर ने जवाब दिया अपने परिवार वालों के लिए, उनकी पालन-पोषण के लिए. नारद जी ने रत्नाकर से कहा तुम जिसके लिए ये अपराध कर रहे हो क्या वे तुम्हारे पापों का उत्तरदायी बनने को तैयार हैं?. रत्नाकर असमंजस में पड़ गए, नारद जी को जंगल में ही एक पेड़ में बांध कर अपने घर की ओर चल पड़े. जब वो परिवार वालों से नारद मुनि के सवालों का जवाब मांगे तो उत्तर सुन उन्हें बहुत निराशा हुई. परिवार वालों ने साफ कह दिया कि पाप वो कर रहे हैं तो उत्तरदायी भी वहीं होंगे. घरवालों का जवाब सुन रत्नाकर वापस नारद जी के पास लौट आए और उनकी चरणों में गिर गए. इसके बाद नारद जी ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया उन्हें राम-राम का जाप करने की सलाह दी. राम नाम जपते-जपते ही रत्नाकर महर्षि बन गए और आगे जाकर महान महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए.