जब माता सीता को राम के पास बैठाकर रावण ने दिया था विजय का आशीर्वाद और कहा…

अक्सर आपने लोगों से सूना होगा कि राम जैसा बेटा चाहिए लेकिन कभी किसी को ये कहते नहीं सूना होगा कि राम जैसा पति चाहिए. लेकिन रावण एक अच्छा पति था और एक ऐसा राजा था जो अपने समय का कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला, ब्रह्मज्ञानी, बहु-विधाओं का ज्ञानी था.

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जब माता सीता को राम के पास बैठाकर रावण ने दिया था विजय का आशीर्वाद और कहा…

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  • September 29, 2017 7:09 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: अक्सर आपने लोगों से सूना होगा कि राम जैसा बेटा चाहिए लेकिन कभी किसी को ये कहते नहीं सूना होगा कि राम जैसा पति चाहिए. लेकिन रावण एक अच्छा पति था और एक ऐसा राजा था जो अपने समय का कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला, ब्रह्मज्ञानी, बहु-विधाओं का ज्ञानी था.
 
आज से वर्ष 7129 वर्ष पूर्व भगवान राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व में हुआ था. उन्हीं के काल में हुआ था दशानन रावण. राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नाम का दूसरा कोई नहीं मिलेगा. उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था. उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था.
 
ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि हुए. उनका पुत्र विश्रवा हुआ. विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था. विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतान रावण, कुंभकर्ण और विभीषण था.
 
शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित रक्ष समाज की स्थापना करने वाला रावण आज बुराई का प्रतीक माना जाता है इसलिए कि उसने दूसरे की स्त्री का हरण किया. लेकिन रावण के अंदर थी ये सब अच्छाइयां.
 
रावण महापंडित होने के साथ-साथ एक कुशल राजा था
रावण पुष्पक विमान में माता सीता को साथ लेकर आया और सीता को राम के पास बैठने को कहा, फिर रावण ने यज्ञ पूर्ण किया और राम को विजय का आशीर्वाद दिया. फिर रावण सीता को लेकर लंका चला गया. लोगों ने रावण से पूछा, आपने राम को विजय होने का आशीर्वाद क्यों दिया ? तब रावण ने कहा- महापंडित रावण ने यह आशीर्वाद दिया है, राजा रावण ने नहीं.
 
शिवभक्त रावण
रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की. कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है. रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी.
 
राजनीति का ज्ञाता
जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा था, तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा. जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा- ‘सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए यह पहली सीख है. रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए.
 
कई शास्त्रों का रचयिता रावण
रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था. उसने ही शिव की स्तुति में तांडव स्तोत्र लिखा था. रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी.
 
परिवारवालों के लिए जान देता था रावण
भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, ‘सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है.
 
माता सीता को छुआ तक नहीं
भगवान राम की अर्धांगिनी मां सीता का पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था, लेकिन इस कैद के दौरान रावण ने माता सीता को छुआ तक नहीं था.
 
 
अच्छा शासक 
रावण ने असंगठित राक्षस समाज को एकत्रित कर उनके कल्याण के लिए कई कार्य किए. रावण के शासनकाल में जनता सुखी और समृ‍द्ध थी. सभी नियमों से चलते थे और किसी में भी किसी भी प्रकार का अपराध करने की हिम्मत नहीं होती थी.इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया. आज के युग के अनुसार रावण का राज्य विस्तार इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका तक था.
 
रावण ने रचा था नया संप्रदाय
आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास ‘वयम् रक्षाम:’ तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास ‘लंकेश्वर’ के अनुसार रावण शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला था.
 
 
लक्ष्मण को बचाया था रावण ने ?
रावण के राज्य में सुषेण नामक प्रसिद्ध वैद्य था. जब लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए तब जामवंतजी ने सलाह दी की अब इन्हें सुषेण ही बचा सकते हैं. रावण की आज्ञा के बगैर उसके राज्य का कोई भी व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर सकता. माना जाता है कि रावण की मौन स्वीकृति के बाद ही सुषेण ने लक्ष्मण को देखा था और हुनमानजी से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था.
 
 
पंडित के साथ-साथ वैज्ञानिक भी था रावण
रावण अपने युग का प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी था. आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उसका योगदान महत्वपूर्ण है. इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया. 

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