नई दिल्ली. हिन्दू परंपरा में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है. पितरों का पितृ पक्ष के साथ एक खास संबंध होता है, ऐसा माना गया है कि श्राद्ध कर्म से पितर अन्न-जल से तृप्त होकर अपना आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध पखवाड़े के दौरान देश में कई जगह पिंडदान किया जाता है.
पिंडदान का मतलब होता है कि मृतक के निमित्त किए जाने वाले पदार्थ जिसमें जौ या चावल के आंटे को गूंथकर बनाया गया गोलाकृति बनाई जाती है. पिंडदान करते समय दक्षिण दिशा में खड़े होकर दाएं कंधे पर चावल, घी, शक्कर, एवं शहद औऱ गाय के दूध को मिलाकर बने पिंडे को अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है.
पिंडदान के लिए विशेष स्थल
श्राद्ध पखवाड़े के समय में देश में कई स्थल हैं जहां पिंडदान किया जाता है. विशेष रूप से देश में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है.
इस लिए करते हैं पिंडदान
गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा था कि गया में यज्ञ करने के लिए पवित्र स्थल चाहिए. और उन्हें पाप मुक्त करने वाला बना दें. इसके बाद से लोग गया जाते हैं. जो भी लोग यहां पर पिंडदान करें, उनके पितरों को मुक्ति मिले. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने यानी पिंडदान के लिए गया आते हैं.