नई दिल्ली. पूर्णिमा के बाद अमावस्या के 15 दिनों तक पितृ-आराधाना की जाती है. श्राद्ध पक्ष में ब्राह्रामण भोजन कराने का विधान है. श्राद्ध तर्पण से पितृ को प्रसन्नता एवं संतुष्टि मिलती है. पितृगण प्रसन्न होकर दीर्घ आयु, संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं.
हिन्दू परंपरा के अनुसार पितरों तर्पण करने का विशेष महत्व होता है. कहा जाता है देव, ऋषि और पितृ ऋण ये हैं वो तीन ऋण जो बेहद महत्व रखते हैं, श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है. विष्णु पुराण में इस बात का जिक्र किया गया है कि श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं.
श्राद्ध के महत्वपूर्ण तिथियां:
5 – सितंबर को श्राद्ध पूर्णिमा
6 – सितंबर को पूर्णिमा दोपहर तक रहेगी इसके बाद प्रतिपदा श्राद्ध होगा
7 – सितंबर द्वितीया श्राद्ध
8 – सितंबर तृतीया श्राद्ध
9 – सितंबर चतुर्थी श्राद्ध
10 – सितंबर पंचमी श्राद्ध
11 – सितंबर षष्ठी श्राद्ध
12 – सितंबर सप्तमी श्राद्ध
13 – सितंबर अष्टमी श्राद्ध
14 – सितंबर नवमी श्राद्ध
15 – सितंबर दशमी श्राद्ध
16 – सितंबर एकादशी श्राद्ध
17 – सितंबर द्वादशी श्राद्ध त्रयोदशी श्राद्ध
18 – सितंबर चतुर्दशी श्राद्ध
19 – सिंतबर सर्व पितृ अमावस्या