…तो इस वजह से ईद-उल-अजहा को कहते हैं बकरीद या बकरा ईद

नई दिल्ली: आज पूरे देश में ईद-उल-अजहा यानि की बकरीद धूम धाम से मनायी जा रही है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईद-उल-अजहा की सभी देशवासियों को बधाई दी है. इस्लाम धर्म में बकरीद को कुर्बानी का पर्व माना गया है. इसलिए इस दिन सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी जाती है. आईए जानते हैं आखिर क्यों दी जाती है कुर्बानी. इसके पीछे का मकसद क्या है…
ईद-उल-फितर के दो महीने दस दिन बाद ईद-उल-अजहा आता है. आपको बता दें कि इस्लाम में बकरीद या बकरा ईद के नाम कोई जिक्र नहीं है. यह नाम सिर्फ भारत में ही चलन है. यहां ज्यादातर मुसलमान बकरे की कुर्बानी देते हैं इसलिए बकरा ईद या फिर बकरीद कहा जाता है.
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक ईद-उल-अजहा के दिन सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने की रस्म है. सऊदी अरब में जब इस्लाम की शुरूआत के दौरान इंसानों का जीवन-यापन केवल जानवरों पर ही निर्भर माना जाता था. जानवरों की कुर्बानी देने रस्म की शुरुआत यहीं से हुई. बता दें कि इस्लाम में किसी बीमार या ऐबदार जानवर की कुर्बानी के लिए मना किया गया है.
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक खुदा ने इब्राहिम को अपने सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी के लिए कहा था. मान्यताओं में ये भी आता है कि इब्राहिम को सपना आया था कि खुदा ने उसको ऐसा करने के लिए कहा है. खुदा का हुक्म समझकर इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइली की कुर्बानी देने के लिए चले गए. बताया जाता है इब्राहिम को सबसे प्यारा अपना बेटा लगता था चुंकी खुदा का हुक्म समझकर उसने अपने बेटे की बलि देने चले गए. जब इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे थे तो खुदा इब्राहिम की कुर्बानी देने की जज्बा से बेहद खुश हुए और इस्माइली की जगह भेड़ की कुर्बानी हो जाती है. मान्यता है कि अल्लाह इब्राहिम की परिक्षा ले रहे थे, जिसमें वो पास हो जाते हैं और इब्राहिम और इस्माइली के इस कदम को देखते हुए खुदा ने दोनों को अपना पैगंबर बना लिया. कुर्बानी की रस्म की शुरूआत यहीं से हुई.
कुर्बानी की रस्म के बाद मींट को तीन हिस्सों में बांटा जाता है, एक हिस्सा परिवार के लिए रख लिया जाता है और दो हिस्से समाज में आर्थिक रुपसे  कमजोर और गरीब लोगों में बांट दिया जाता हैं क्योंकि ये लोग कुर्बानी नहीं दे सकते. इसलिए मींट बांटकर उन्हें अपनी कुर्बानी का भाव में शरीक किया जाता है.
बदलते वक्त के साथ त्योहारों के मायने बदल गए. इस त्योहार का अभी तक एक चीज नहीं बदली है तो वो है प्यार. गिले-शिकवे मिटाकर आज के दिन लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई के साथ आपसी भाईचारे और प्यार का संदेश देते हैं. दरअसल कुर्बानी का असली अर्थ खुदा ने बताया है कि अपनी प्यारी चीज को आर्थिक रुप से कमजोर और जरुरतमंद लोगों के लिए कुर्बान कर देना है. जरुरतमंद के लिए आगे आना है.
कुर्बानी की रस्म के बाद गरीबों को काफी दान दिया जाता है, आज के दिन लोग प्यार का संदेश देते हुए आगे बढ़कर दान करते हैं. उन्हें अनाज के साथ-साथ कई जरुरत की चीजें दान की जाती हैं. खुदा के इस पैगाम को लोग आज के दिन हमेशा याद रखते हैं और भाईचारा ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है. प्यार से रहना, जरुरतमंदों की जरुरत करना, गरीबों के लिए अपनी बहुमूल्य चीज की कुर्बानी देना यही ईद-उल-अजहा है.
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