नई दिल्ली. हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का अपना एक अलग महत्व होता है. भाद्रपद मास में वैसे तो ज्यादा व्रत-त्योहार तो नहीं होते, मगर पद्मा एकादशी का अपना एक अलग ही महत्व है. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.
इस व्रत के पीछे की मान्यता है कि इस दिन आषाढ़ मास से शेष शैय्या पर सोए भगवान विष्णु जी करवट बदलते हैं. यही वजह है कि इस महत्ता को देखते हुए इस शुभ दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार वामन रूप की पूजा की जाती है तथा पालकी में मूर्तियों को स्थापित कर शोभा यात्रा निकाली जाती है.
इस साल यह शुभ मुहुर्त 2 सितंबर को है. यानी कि 2017 में पद्मा एकादशी व्रत 02 सितम्बर को रखा जाएगा. ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सब कुछ शुभ ही शुभ होता है. हालांकि, इस व्रत के करने की विधि को भा अनुसरण करना होता है.
पद्मा एकादशी व्रत विधि
पद्मा एकादशी व्रत वाले दिन भगवान विष्णु तथा उनके वामन अवतार का धूप, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध व फूल आदि से पूजा करने का परंपरा है. इस दिन सात कुम्भों यानि घड़ों को अलग-अलग अनाजों (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर) से भरकर रखा जाता है. पद्मा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल तथा मसूर नहीं खानी चाहिए.
ऐसी मान्यता है कि स्थापित किए हुए घड़े के ऊपर भगवान विष्णु तथा वामन अवतार की मूर्ति रखकर पूजा करने की जाती है. पद्मा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन- कीर्तन या जागरण करना चाहिए. इससे भगवान खुश होते हैं. पद्मा पुराण के अनुसार व्रत अगले यानि द्वादशी के दिन भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान देने का विधान बताया गया है. अंत में भोजन ग्रहण कर व्रत खोलना चाहिए.
पद्मा एकादशी व्रत का महत्त्व
पद्म पुराण के अनुसार पद्मा एकादशी व्रत करने से साधक के सभी पापों का नाश तथा सभी भोग वस्तुओं की प्राप्ति होती है. इस महान व्रत के प्रभाव से व्रती, मोक्ष तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त करता है. इसलिए इस व्रत का इतना ज्यादा महत्व है कि इसे करने वालों को सुख-समृद्धि मिलती है, बशर्ते इसे पूरी विधान के साथ की जाए.