नई दिल्ली : गुरु पूर्णिमा एक ऐसा है जो पूर्ण रूप से गुरुओं के सम्मान के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. गुरु जो इंसान को अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान की प्रकाश की ओर ले जाता है. गुरु जो इंसान का भविष्य संवारता है, उनके सम्मान में ही आषाढ़ के मास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है. बता दें इस बार 9 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है.
इस दिन को हम भारतीय धार्मिक रूप से भी मनाते हैं. मगर क्या आपको पता है कि आखिर इस महान गुरु पूर्णिमा पर्व की शुरुआत कब, कैसे और कहां से हुई. तो चलिए जानते हैं कि इस पर्व के पीछे की वजहें.
क्या है मान्यता
हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन महाऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था. वेद व्यास ने महाभारत समेत कई महान ग्रंथों की रचना की. इतना ही नहीं, इन्हें पांडव के साथ-साथ कौरव भी अपना गुरु मानते थे. यही वजह है कि इनके सम्मान में इस दिन को गुरु पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.
ये है रहस्य
माना जाता है कि प्राचीन समय में बच्चे गुरुकुल में पढ़ा करते थे. वहीं आश्रम में बच्चे गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे. आज की तरह उस वक्त के गुरु पढ़ाने के बदले पैसे नहीं लिया करते थे. विद्या ग्रहण करने के बदले शिष्य गुरु पूर्णिमा के दिन वे गुरू के सम्मान में उनकी पूजा किया करते थे. ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह से आषाढ़ के बादल बिना किसी भेदभाव के बारिश कर पृथ्वी के लोगों का ताप हरती है, गर्मी से राहत देती है, ठीक उसी तरह से सभी गुरु अपने शिष्यों पर इस दिन आशीर्वाद की बारिश करते हैं, वो भी बिना किसी भेदभाव के.
ये है महत्व
गुरु पूर्णिमा अथवा आषाढ़ की पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि इसके दो भाग हैं, जिनमें पहला यह कि इस पूर्णिमा को सबसे बड़ा पूर्णिमा माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह ग्रह-नक्षत्र के लिए भी विशेष होता है. दूसरा ये है कि इस दिन से ही श्रावन मास का प्रारंभ होता है. हिंदू धर्म में इसका काफी महत्व है. आषाढ़ की पूर्णिमा को अवंतिका में अष्ट महाभैरव की पूजन परंपरा से भी जोड़ा जाता है. शास्त्रों में इस दिन गुरुओं के चरण पूजन का भी विधान है.