नई दिल्ली. छठ लोक आस्था का पर्व है. इसमें प्रकृति और सूर्य की पूजा की जाती है. दिवाली से शुरू होकर नौ दिनों तक चलने वाले हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का विशेष स्थान है. इस पर्व में उगते सूर्य के साथ- साथ डूबते सूर्य की भी आराधना की जाती है. ये पर्व अनेक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संदेशों को खुद में समेटे हुए है.
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाई जाती है. यह महापर्व चार दिनों का होता है जो चौथ से सप्तमी तक मनाया जाता है. इसे कार्तिक छठ पूजा भी कहते हैं. इसके अलावा चैत महीने में भी यह पर्व मनाया जाता है जिसे चैती छठ पूजा कहते हैं. पष्ठी के दिन माता छठी की पूजा की जाती हैं, जिन्हें धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उषआ (छठी मैया) कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार छठी मइया और भगवान सूर्य करीबी संबंधी हैं. कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की रक्षा छठी माता करती हैं.
धार्मिक मान्यताओं में इस पर्व को मनाने के लिए 4 तरह की कहानियां प्रसिद्ध है.
सूर्य की उपासना से हुई राजा प्रियवंद दंपति को संतान प्राप्ति
नि:संतान राजा प्रियवंद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी. पर दुर्भाग्य ऐसा कि उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे.
उसी समय भगवान की भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं. उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं. उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी. राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी. और तभी से छठ पूजा होती है.
कौरवों से राजपाठ वापस पाने के लिए किया था द्रौपदी ने व्रत
महाभारत की द्रोपदी ने भी इस व्रत को रखा था. शास्त्रों के अनुसार पांडव अपना पूरा राजपाठ कौरवों से जुए में हार गए थे और जंगल-जंगल भटक रहे थे. द्रौपदी से यह देखा न गया और उसने छठ पूजा की और व्रत रखा. जिसके प्रभाव के कारण पांडवों को अपना खोया हुआ राज वापस मिल गया था.
जब कर्ण को मिला भगवान सूर्य से वरदान
छठ या सूर्य पूजा का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है. मान्यता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण, भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे.
इस दिन राम और सीता ने व्रत रख किया था सूर्य यज्ञ
राम और सीता ने भी छठ पूजा की थी. शास्त्रों के अनुसार जब भगवान श्री राम वनवास से वापस आए तब राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रत रख कर रखकर भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन यह व्रत पूरा किया. इसके बाद राम और सीता ने पवित्र सरयू के तट पर भगवान सूर्य का अनुष्ठान कर उन्हें प्रसन्न किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था.