नई दिल्ली: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा दुर्योधन के महल में पहुंचे। जहां उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया गया। इसके बाद दुर्योधन ने उनसे पांडवों से मिलने और उनकी सेवा करने का मौका देने को कहा। ऋषि दुर्वासा भी इस बात के लिए राजी हो गए और अपने 10 से अधिक […]
नई दिल्ली: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा दुर्योधन के महल में पहुंचे। जहां उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया गया। इसके बाद दुर्योधन ने उनसे पांडवों से मिलने और उनकी सेवा करने का मौका देने को कहा। ऋषि दुर्वासा भी इस बात के लिए राजी हो गए और अपने 10 से अधिक शिष्यों के साथ पांडवों के घर जाने के लिए निकल पड़े।
आगे कथा यह है कि जब महर्षि दुर्वासा पांडवों से मिलने आए तो उन्होंने कहा कि वे आज उनके यहां रुकेंगे और भोजन करेंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने उनसे स्नान आदि से निवृत्त होने का अनुरोध किया। जब युधिष्ठिर ने यह बात द्रौपदी को बताई तो उनकी चिंता और बढ़ गई। चिंता का कारण यह था कि सभी लोग भोजन कर चुके थे और भोजन नहीं बचा था। ऐसे में यदि महर्षि दुर्वासा उन्हें भोजन नहीं करा पाए तो वे उन्हें श्राप दे देंगे।
कहा जाता है कि द्रौपदी को सूर्य देव से एक अक्षय पात्र मिला था। इसमें तब तक भोजन रखा जाता था जब तक द्रौपदी भोजन नहीं कर लेती। सबको भोजन कराने के बाद जैसे ही वह भोजन करती, पात्र पूरी तरह से खाली हो जाता। जब महर्षि पहुंचे, तो सभी पांडव और पांचाली भोजन कर चुके थे। युधिष्ठिर ने दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों का स्वागत किया और प्रार्थना कि की आप नदी में स्नान कर आएं, तब तक भोजन तैयार होता है। ऋषि भोजन के लिए शीघ्रता करने को कहकर स्नान के लिए चले गए। इधर धर्मराज ने अपना संकट द्रौपदी को बताया।
द्रोपदी ने संकट के समय में श्री कृष्ण को पुकारा। भगवान कृष्ण उसी क्षण द्रौपदी जी के सम्मुख उपस्थित हुए और बोले मुझे बड़ी भूख लगी है, कुछ खाने को दो। द्रौपदी ने स्नेह भरे स्वर में कहा, तुम्हें सदा हंसी ही सूझती है। कुछ खाने को होता, तो तुम्हें क्यों बुलती? भगवान कृष्ण ने बटलोई में लगे हुए शाक के एक पत्ते को खाकर बहुत जोर से डकार लीं । और उन विश्वात्मा की तृप्ति होने पर तीनों लोक तृप्त हो गए। महर्षि दुर्वासा और उनकी शिष्य मंडली तो इतने तृप्त हो गए कि उन्हें भी डकार आने लगीं। इस प्रकार द्रौपदी की लाज भगवान कृष्ण ने बचाई थीं।
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