मैनपुरी, मैनपुरी से अखिलेश यादव ने डिंपल यादव को मैदान में उतार दिया है. कहा जा रहा था कि अखिलेश यादव इस सीट से तेज प्रताप यादव को उतारेंगे लेकिन उन्होंने डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया. अब डिंपल यादव के प्रत्याशी बनने के बाद कहा जा रहा है कि नेताजी के निधन के बाद जो यादव कुनबा एक हो रहा था वो एक बार फिर बिखर गया है.
मुलायम के निधन के बाद मुलायम कुनबा एक साथ खड़ा नज़र आ रहा है लेकिन मैनपुरी उपचुनाव के जरिए उमड़ रही सियासी महत्वाकांक्षाओं के चलते सबके सुर बदलने लगे हैं, हाल ही में अखिलेश यादव ने मैनपुरी में उम्मीदवार तय करने के लिए एक बैठक बुलाई थी जिसमे रामगोपाल यादव और धर्मेंद्र यादव तो शामिल थे लेकिन शिवपाल यादव को इस बैठक से दूर रखा गया. शिवपाल की गैरमौजूदगी में ये बैठक कर अखिलेश ने इतना तो सन्देश दे ही दिया है कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा शिवपाल को ज़रा भी भाव देने के मूड में नहीं है, अखिलेश के इस रुख को देखते हुए शिवपाल ने भी चुप्पी तोड़ी है और अखिलेश के खिलाफ बयानबाज़ी शुरू कर दी है, चाचा शिवपाल की टिस उनके बयानों में साफ़ झलक रही है.
मुलायम की परंपरागत सीट होने के चलते अखिलेश मैनपुरी सीट को अपने परिवार के ही किसी को देना चाहते हैं अब खुद यूपी में ही सक्रिय होने के चलते अखिलेश लोकसभा चुनावो तक विधानसभा में ही रहने का फैसला कर चुके है ऐसे में मुलायम की सीट से डिंपल यादव को उतारा गया है, दरअसल डिंपल का नाम तय करने के पीछे दो बड़ी वजह हैं, पहला तो ये कि परिवार के भीतर तेजप्रताप और धर्मेंद्र चुनाव लड़ने के इच्छुक थे ऐसे में अखिलेश उलझन में थे किसे टिकट दें वहीं दूसरी ओर शिवपाल और उनकी पत्नी सरला यादव से डिंपल यादव के संबंध मधुर हैं. ऐसे में डिंपल के नाम पर शिवपाल के लिए विरोध करना मुश्किल हो सकता है.
इस बार मैनपुरी में मुलायम का उत्तराधिकारी कौन बनेगा इस पर अभी से सियासी घमासान शुरू हो गया है. मैनपुरी का ये पहला चुनाव है जो नेता जी के बिना हो रहा है ऐसे में अखिलेश यादव के लिए ये बड़ी चुनौती साबित होने वाला है, क्योंकि मैनपुरी सीट पर पूरे परिवार की पकड़ मानी जाती है, मैनपुरी मुलायम सिंह यादव का गढ़ रहा है और यहीं से शिवपाल यादव ने भी सियासत का क, ख, ग, घ सीखा है. मुलायम के नाती तेज प्रताप यहां से सांसद रह चुके हैं, वहीं उनके बड़े भाई धर्मेंद्र यादव भी यहां की नुमाइंदगी कर चुके हैं. ऐसे में अखिलेश के लिए मैनपुरी का चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है क्योंकि यहाँ भाजपा से तो बाद में मुकाबला होगा पहले तो रस्सा कस्सी परिवार में ही शुरू हो गई है.
अपर्णा यादव के अलावा भाजपा यहाँ अन्य नामों पर भी चर्चा कर रही है. 2019 में हुए लोकसभा के सामान्य चुनाव में भाजपा ने यहां प्रेमसिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया था कर प्रेमसिंह शाक्य ने ये चुनाव दमदारी से लड़ा, यही वजह रही कि मुलायम की पूर्व के चुनाव की लाखों की जीत सिर्फ 94 हजार मतों में सिमट कर रह गई. प्रेमसिंह भी इस बार दावेदार हैं लेकिन इसके अलावा पार्टी खेमे में स्थानीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंह चौहान, पूर्व ब्लॉक प्रमुख राहुल राठौर का नाम भी चर्चा में है, इसके अलावा पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के पुत्र सुमित चौहान, पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य, पूर्व प्रत्याशी तृप्ति शाक्य के अलावा विधायक पटियाली ममतेश शाक्य के नाम पर भी मंथन किया जा रहा है.
अखिलेश के रुख को देखते हुए शिवपाल यादव अब इतना तो समझ ही चुके हैं कि कुनबे की एका के नाम पर अखिलेश के साथ खड़े होकर वो अपनी सियासत को बहुत ज्यादा विस्तार नहीं कर पाएंगे, वहीं अपनी पार्टी की सियासी हैसियत को देखते हुए अखिलेश के साथ उन्हें बहुत ही सीमित दायरे में रहना होगा, अब विधानसभा चुनाव में भी सपा ने उन्हें सिर्फ एक सीट दी थी वो भी पार्टी ने अपना सिंबल जारी किया था, तब टिकट न मिल पाने के चलते कई नेताओं ने शिवपाल का साथ छोड़ दिया था. चुनाव के बाद शिवपाल यादव की अनदेखी करने के बाद उनका गुस्सा भी फूटा था, हालांकि नेता जी के निधन के बाद दोनों साथ देखे जा रहे थे, ऐसे में लग रहा था कि परिवार मे एका हो जाएगा लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए ये बहुत मुश्किल दिखाई पड़ता है.
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