September 8, 2024
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बिहार में यादव-मुस्लिम वोटों के बिना गिर जाएगी जेडीयू-बीजेपी सरकार ?

  • WRITTEN BY: Aniket Yadav
  • LAST UPDATED : June 20, 2024, 9:49 pm IST
Bihar: बिहार के सीतामढ़ी लोकसभा के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने सोमवार, 17 जून को एक विवादित बयान दिया, जिसमें वो कहते हैं कि यादव और मुस्लिम वोटरों ने उन्हें वोट नही दिया है तो वे उनका काम नही करेंगे. उनके इस बयान के बाद जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी समेत कई पार्टियों ने उनके इस बयान का विरोध किया है. लेकिन देवेश चंद्र ठाकुर के इस बयान के बाद देश में एक बहस और छेड़ दी है कि क्या सच में बिहार के यादव-मुस्लिम वोटर बिहार में जेडीयू-बीजेपी को वोट नही करते हैं. क्या जेडीयू-बीजेपी का गठबंधन बिहार की आबादी के लगभग 31 प्रतिशत वोटों के बिना सरकार बना लेते हैं ? जानते हैं
हाल ही में जब बिहार में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन की सरकार थी तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बिहार में जातिगत जनगणना कराई थी. जिसमें यादवों की राज्य में सबसे ज्यादा 14.26 प्रतिशत जनसंख्या सामने आई थी. जनगणना में मुस्लिमों की जनसंख्या लगभग 17.7 प्रतिशत के करीब बताई गई थी. यानी बिहार की यादव मुस्लिम जनसंख्या जोड़ दें तो ये तकरीबन 32 प्रतिशत के करीब हो जाता है. तो क्या ऐसा संभव है कि राज्य कि इतनी बड़ी आबादी के वोटों के बिना राज्य में सरकार बन जाए ?

यादव-मुस्लिम वोटरों का जेडीयू की तरफ झुकाव

नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में एक सेक्यूलर नेता के तौर देखा जाता रहा है. गुजरात दंगों मे उस वक्त के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उंगलियां उठी थीं. जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने गुजरात से दिल्ली लाने का प्लान बनया तो नीतीश कुमार ने बिहार में बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन साल 2013 में तोड़ लिया था. जिससे बिहार के मुस्लिमों में संदेश गया कि नीतीश कुमार सिर्फ एक जाति या धर्म के नेता नही है वो सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं. 

साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार-लालू यादव की पार्टी जेडीयू-आरजेडी के बीच गठबंधन हुआ. जिसमें यादव और मुस्लिमों ने खुलकर नीतीश कुमार और लालू यादव का साथ दिया. नीतीश कुमार को मुस्लिमों का वोट मिलने के पीछे का श्रेय उनकी सेक्यूलर छवि को जाता है. हालांकि इसके बाद नीतीश कुमार का बीजेपी और आरजेडी के साथ आने-जाने का सिलसिला लगा रहा. लेकिन मुस्लिम-यादव के वोट देने में ज्यादा कुछ परिवर्तन नही आया. इसका सबसे बड़ा प्रमाण बिहार के साल 2020 के विधानसभा चुनाव हैं, जहां सीएसडीएस ने सर्वे कर बताया कि बिहार के हर दस में से नौ यादवों ने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को वोट दिया, जबकि मुस्लिमों के कुल वोट का तीन चौथाई वोट गठबंधन को मिला.

बिहार के मुस्लिम नीतीश कुमार से खुश, क्यों ?

आरजेडी-बीजेपी का जब 17 साल पुराना गठबंधन बिहार में टूटा, तब नीतीश कुमार को सबसे बड़ी चिंता ये थी कि बीजेपी को मिलने वाला कथित सवर्ण जातियों के वोट की भरपाई कैसे की जाए. इसलिए नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई सुविधाएं दी. साल 2013 में नीतीश कुमार ने 1989 के भागलपुर दंगों के पीड़ित मुस्लिमों को मिलने वाली पेंशन 2500 से बढ़ाकर 5000 रुपए कर दी. 
मुस्लिम धर्म की पढ़ाई कराने वाले वॉलेंटियर शिक्षकों की प्रतिमाह मिलने वाली राशि को 3500 रुपए से बढ़ाकर 5000 रुपए प्रतिमाह कर दी थी. नीतीश कुमार के इन सभी कार्यों से मुस्लिम समाज में एक पॉजिटिव संदेश गया. जिससे वो जेडीयू किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन करे लेकिन मुस्लिमों का वोट नीतीश कुमार के ही साथ रहता है.

देवेश चंद्र ठाकुर के बयान को गंभीरता से लेते हुए जेडीयू नेता नीरज कुमार ने अपनी सफाई पेश की और कहा,” देवेश चंद्र ठाकुर नवनिर्वाचित सीतामढ़ी से जेडीयू पार्टी के सांसद हैं. उन्होंने कार्यकर्ताओं के मध्य जो पीड़ा बयां कि वो अपने कार्य अनुभव के आधार पर की होगी. चुनाव जीतने पर जनप्रतिनिधि समस्त जनता का हो जाता है. उन्हें ऐसे मामले से बचना चाहिए.”

यदि नीतीश कुमार के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर की बात करें तो यदि उनके यादव-मुस्लिम के बारे में दिए गए बयान को यदि गंभीरता से यादव-मुस्लिम पक्ष ले लें तो जेडीयू के लिए बिहार में सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा. 

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