नई दिल्ली, 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल फूंकने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है, इसी कड़ी में बुधवार यानी आज भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया, जिसके तहत संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और […]
नई दिल्ली, 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल फूंकने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है, इसी कड़ी में बुधवार यानी आज भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया, जिसके तहत संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया गया तो कई नए चेहरों को बोर्ड में शामिल किया गया.
पार्टी ने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का गठन करते हुए बीएस येदयुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव और सत्यनारायण जटिया को नए चेहरे को तौर पर बोर्ड में शामिल किया है.
इस फेरबदल के बाद गडकरी और चौहान के बोर्ड से बाहर होने के कारणों पर तो चर्चा हो ही रही है, लेकिन बोर्ड में शामिल हुईं एक मात्र महिला सदस्य डॉ. सुधा यादव के नाम की भी खासा चर्चा हो रही है. ये चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि सुधा यादव से पहले बोर्ड में एकमात्र महिला सदस्य स्वर्गीय सुषमा स्वराज हुआ करती थीं जो 2014 से पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं और मोदी सरकार बनने के बाद देश की पहली महिला विदेश मंत्री थी, अब सुषमा स्वराज की जगह सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में जगह दी गई है.
दरअसल बात 1999 की है जब सुधा यादव का नाम पहली बार एक नेता के रूप में सामने आया था, करगिल युद्ध के बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कांग्रेस की तरफ से चुनाव मैदान में उतरे राव इंद्रजीत सिंह से मुकाबला कैसे किया जाए. पार्टी के सभी बड़े नेताओं का मानना था कि इंद्रजीत के सामने किसी दिग्गज नेता को उतारना चाहिए ताकि पार्टी को फायदा मिले और वो कांग्रेस को हरियाणा की जमीन पर मात दे सके.
इस दौरान नरेंद्र मोदी हरियाणा के पार्टी प्रभारी थे, और पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनसे महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट पर प्रत्याशी को लेकर सवाल किया तो उन्होंने उस समय एक ही नाम सामने रखा, और वो नाम और किसी का नहीं बल्कि डॉ. सुधा यादव का ही था.
सुधा यादव के पति बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे और करगिल युद्ध में ही शहीद हुए थे, सुधा इस सब के बाद राजनीति में आने या चुनाव लड़ने जैसा कुछ भी नहीं सोच रही थी, ऐसे में जब नरेंद्र मोदी ने नाम सुझाया तो भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उनसे इस बारे में बात की, लेकिन नतीजा शून्य रहा. सुधा चुनाव नहीं लड़ना चाहती थीं, सो उन्होंने मना कर दिया. चिंता में पड़ी पार्टी ने सुधा यादव को मनाने की जिम्मेदारी प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी को ही सौंपी। सुधा यादव ने कई बार इस पूरे वाकिये पर चर्चा करते हुए बताया कि जब उन्होंने साफतौर पर चुनाव में नहीं उतरने के लिए कह दिया था तब उस दौरान हरियाणा के प्रभारी नरेंद्र मोदी से फोन पर उनकी बात हुई, उस समय नरेंद्र मोदी ने सुधा से कहा था कि आपकी जितनी जरूरत आपके परिवार को है उतनी ही जरूरत इस देश को भी है. सुधा बताती हैं कि पति की शहादत के बाद उनके लिए वो समय काफी मुश्किल था, ऐसे में चुनाव लड़ने का ख्याल तो दूर-दूर तक उनके जेहेन में नहीं था, लेकिन नरेंद्र मोदी की बातों ने उन्हें ऊर्जा दी. और लेक्चरर बनने की चाहत रखने वालीं सुधा यादव ने चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी, और इस तरह सुधा यादव ने राजनीति में कदम रखा.
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