क्या है भारत जोड़ो यात्रा के सियासी मायने?

नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में अपनी गिरती हुई साख के मद्देनज़र “भारत जोड़ो यात्रा” की शुरुआत की थी। इस यात्रा का मकसद राहुल गांधी को एक बड़े नेता के तौर पर पेश करना भी था। 2019 के लोकसभा चुनावों और इसके बाद हाल-फिलहाल के राज्यों के चुनावों में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन में सुधार के लिए यह यात्रा एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।

कैसी रही इस सफ़र की शुरुआत?

भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरु किया गया था। इस यात्रा के लिए तय किया गया था कि 3570 किलोमीटर का कुल सफ़र पैदल चलकर जनता से सीधे संवाद किया जाएगा। यह भी माना जा रहा था कि राहुल गांधी के लिए इस सफ़र को पूरा कर पाना मुश्किल भरा फ़ैसला साबित हो सकता है। फ़िलहाल इस यात्रा ने 16 दिसंबर को 100 दिन पूरे कर लिए। इस यात्रा के दौरान जिन राज्यों में पार्टी के कार्यकर्ता राजनीति से अलग-थलग पड़ चुके थे उन्हें फिर से एक बार फिर पार्टी के प्रयासों में शामिल होने का मौका मिल गया है।

क्या यह यात्रा कांग्रेस पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकती है?

कांग्रेस पार्टी राज्य दर राज्य हारती चली जा रही है। ऐसे में एक ऐसी यात्रा जिसने 100 दिनों के सफ़र में 8 राज्यों, 42 ज़िलों और 2800 किलोमीटर का लंबा सफ़र तय किया है उससे राजनीतिक सफलता की उम्मीद होना लाजमी है। कांग्रेस के बारे मे ना जा रहा है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गुजरात चुनाव से पहले ही मान चुका था की विदानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना ही पड़ेगा। ऐसी स्थिती में अगर पार्टी उन राज्यों की तरफ ध्यान केंद्रित करे जहां पर उसे किसी सियासी फायदे की उम्मीद है तो उसे उसी दिशा में प्रयास करना चाहिए।

किन राज्यों में कांग्रेस पार्टी ने लोगों से जमसंपर्क का प्रयास किया है?

इन 100 दिनों की यात्रा में भारत जोड़ो यात्रा ने केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से गुज़री है। कांग्रेस का मकसद साफ़ देखा जा सकता है कि उनका ध्यान किसी तरह से दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी सियासी जगह बनाकर 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना है।

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