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यूपी एमएलसी चुनाव में हार के बाद सपा से एक और ओहदा छीनने की तैयारी

विद्याशंकर तिवारी लखनऊ. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से जीत का जो सिलसिला शुरू किया था वह विधान परिषद चुनाव तक न केवल कायम रखा है बल्कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को चारो तरफ से घेर लिया है. भगवा पार्टी ने जो तैयारी की है उसके हिसाब से यूपी विधान परिषद में सपा के […]

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यूपी एमएलसी चुनाव में हार के बाद सपा से एक और ओहदा छीनने की तैयारी
  • April 13, 2022 7:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

विद्याशंकर तिवारी

लखनऊ. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से जीत का जो सिलसिला शुरू किया था वह विधान परिषद चुनाव तक न केवल कायम रखा है बल्कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को चारो तरफ से घेर लिया है. भगवा पार्टी ने जो तैयारी की है उसके हिसाब से यूपी विधान परिषद में सपा के पास नेता प्रतिपक्ष का जो ओहदा है वह भी छीन जाएगा.

यूपी के स्थानीय निकाय क्षेत्र की 36 विधान परिषद (एमएलसी) सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने 33 सीटों पर जबरदस्त जीत हासिल की है. दूसरी ओर दो सीटों पर निर्दलीय जीते और एक सीट पर राजा भैया की जनसत्ता पार्टी ने कब्जा जमाया है. इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका सपा को लगा है, विधान परिषद् चुनाव में सपा का खाता भी नहीं खुल सका. सपा की परेशानी का सिलसिला यही नहीं थमने वाला है और जुलाई में काफी संख्या में सदस्य रिटायर होंगे जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान सपा को होगा.

अभी विधान परिषद में सपा सदस्यों की संख्या 17 है जो घटकर 5 पर आ जाएगी. जो चुनाव होंगे उसमें सपा को 4 सीटें मिलेगी जबकि नेता प्रतिपक्ष का पद लेने के लिए दस फीसद एमएलसी होना जरूरी है. इस तरह विधान परिषद में भी सपा का सूपड़ा साफ़ हो जाएगा और नेता प्रतिपक्ष का ओहदा जो कि अभी संजय लाठर के पास है निकल जाएगा.

पांच साल में बीजेपी ने जमा ली जड़ें

साल 2017 में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय विधान परिषद में भाजपा के महज सात ही सदस्य हुआ करते थे और सपा प्रचंड बहुमत के साथ यहाँ सबसे बड़ी पार्टी थी. उसके बाद सूबे में जैसे-जैसे एमएलसी के चुनाव होते गए भाजपा के विधान परिषद सदस्यों की संख्या बढ़ती गई, इसकी एक वजह तो सपा के सदस्यों का रिटायर होना है, तो दूसरी वजह सपा के सदस्यों का इस्तीफ़ा देना है.

स्थानीय निकाय की 36 सीटों पर चुनाव और 33 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के सदस्यों की संख्या 67 पर पहुंच गी है जबकि सपा सदस्यों की संख्या घटकर 17 हो गई है. ऐसे में अब छह जुलाई के बाद सपा से उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद भी छिना जाने वाला है क्योंकि सपा के 17 सदस्यों में से 12 सदस्यों का कार्यकाल इसी साल छह जुलाई तक अलग-अलग महीने में समाप्त हो रहा है. ऐसे में, इनमें से ज्यादातर सीटें सत्ताधारी बीजेपी के खाते में जानी हैं, जिसके चलते उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी जानी तय मानी जा रही.

कैसे होता है नेता प्रतिपक्ष का चुनाव?

विधानमंडल के किसी भी सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद विपक्ष के सबसे बड़े दल यानि सबसे बड़ी पार्टी को मिलता है, लेकिन इसके लिए विपक्षी दल के सदस्यों की न्यूनतम संख्या 10 फीसद होन ज़रूरी है. सपा के पास मौजूदा समय में 17 एमएलसी हैं, जिनमें से 12 सदस्यों का कार्यकाल जुलाई महीने तक खत्म होने वाला है. जो चुनाव होंगे उसमें उसे अधिक से अधिक 4 सीटें मिलेगी क्योंकि जो सीट खाली हो रही है उस पर विधायकों को वोट डालना है. ऐसे में, सपा के पास कुल 9 सदस्य रह जाएंगे जबकि नेता प्रतिपक्ष का ओहदा लेने के लिए 10 सदस्यों का होना जरूरी है.

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