केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बयान से कई बातें साफ हो रही हैं. राजन के बयान से साफ है कि बैंकिंग क्षेत्र में डूबे हुए कर्ज (एनपीए) के लिए पूर्व की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ही जिम्मेदार है.
नई दिल्लीः देश की आर्थिक विकास दर में गिरावट, बैंकिंग क्षेत्र में डूबे कर्ज (एनपीए) और इससे जुड़े कई मुद्दों के लिए सोमवार को रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पिछली यूपीए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया था. जिसके बाद बीजेपी एकाएक कांग्रेस पर हमलावर हो गई. मंगलवार को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कांग्रेस का पर्दाफाश हो चुका है. RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बयान से साफ होता है कि बढ़े हुए एनपीए के लिए कांग्रेस नीत पूर्व UPA सरकार ही जिम्मेदार है.
स्मृति ईरानी ने कहा, ‘यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी एक ऐसी सरकार चला रही थी जिसने भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर करार प्रहार किया. रघुराम राजन ने कहा कि 2006 से 2008 के बीच एनपीए में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई.’ पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाले के एक आरोपी मेहुल चोकसी के बारे में सवाल पूछे जाने पर ईरानी ने कहा कि यह सवाल जांच एजेंसियों से पूछा जाना चाहिए. केंद्रीय मंत्री होने के नाते वह इस तरह के आरोपों का जवाब नहीं दे सकतीं.
बताते चलें कि एस्टिमेट कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को भेजे एक नोट में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था, ‘UPA सरकार के समय बढ़े हुए एनपीए के लिए बैंककर्मियों का अति उत्साह भी जिम्मेदार है. लोन देते वक्त बैंककर्मियों ने काफी उदारता बरती थी, जिसकी वजह से एनपीए बढ़ता चला गया. साथ ही कोयला खदानों का संदिग्ध आवंटन और उसकी जांच का डर जैसी समस्याओं ने सरकार के निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर कर दिया था. ये बात यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के दौरान देखी गई.’
The Congress was exposed yesterday. Raghuram Rajan's statement clearly proves that it is Congress who is responsible for increased NPA. Rahul Gandhi, Priyanka Vadra & Sonia Gandhi wanted to sabotage the taxpayer's money: Union Minister Smriti Irani pic.twitter.com/txfa5wTkeb
— ANI (@ANI) September 11, 2018
राजन ने आगे कहा कि एनपीए बढ़ने की एक वजह यह भी है कि UPA सरकार के समय रुके हुए प्रोजेक्ट की लागत बढ़ती चली गई जिसे कंपनियों के लिए चुका पाना मुश्किल हो गया. दरअसल रुके पड़े बिजली संयंत्रों को फिर से शुरू करने में भी सरकार सुस्त नजर आई थी.
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