Unemployment Rate 2017-18 : नरेंद्र मोदी सरकार लोकसभा चुनाव 2019 से पहले एक फरवरी को अपना अंतरिम बजट पेश करने जा रही है. लेकिन इस बजट से पहले एनएसएसओ के एक रिपोर्ट ने मोदी सरकार को असहज कर दिया है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते वर्ष बेरोजगारी दर ने 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
नई दिल्ली. देश आम चुनाव के मुहाने पर है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कल यानी कि एक फरवरी को अपना आखिरी बजट (अंतरिम बजट) पेश करने जा रही है. जिसके बाद आम चुनाव का ऐलान किया जाएगा. आम चुनाव से पहले बेरोजगारी के मामले पर एक रिपोर्ट सामने आई है. रिपोर्ट की माने तो साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा रही. यह रिपोर्ट पेश की गई है राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की ओर से. इस सर्वे रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते वर्ष बेरोजगारी दर पिछले 45 साल के इतिहास में सबसे ज्यादा रही. इस रिपोर्ट को आधार बताते हुए विपक्षी दल एनडीए सरकार पर हमला कर रही है.
अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस रिपोर्ट का खुलासा किया है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इस रिपोर्ट को दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा मंजूरी दिया गया था. जिसके बाद भी सरकार ने इस रिपोर्ट को सावर्जनिक नहीं किया. सरकार की ओर से इस रिपोर्ट को जारी नहीं किए जाने के बाद राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्य पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. सदस्यों के इस्तीफे के बाद विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि सरकार अपनी नाकामियों को छूपा रही है. आरोप-प्रत्यारोप से इतर आईए जानते है एनएसएसओ की पीएसएफएस रिपोर्ट की बड़ी बातें.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार साल 1972 के बाद सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर साल 2017-18 में रही. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 थी. तब यूथ इम्प्लॉइमेन्ट 13 से 27 प्रतिशत थी. रिपोर्ट बनाने वाले अर्थशास्त्रियों के अनुसार बीते वर्ष श्रमबल की भागीदारी दर काफी कम रही. जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए अथवा उन्हें रोजगार नहीं मिला. यह रिपोर्ट नोटबंदी के ऐलान के बाद एनएसएसओ का पहला सर्वेक्षण था. जिसे मोदी सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से इस्तीफा देने वाले पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार उनकी काम को गंभीरता से नहीं ले रही है. उन दोनों ने सरकार पर उन्हें साइडलाइन करने का आरोप लगाया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से इस्तीफा देने का कारण बताते हुए दोनों सदस्यों ने कहा था कि जब उनकी काम को सरकार गंभीरता से नहीं लेगी तो उनके लिए इस्तीफा के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है.
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