जयपुर। सचिन पायलट ने रविवार को ऐलान किया कि वो 11 अप्रैल यानी आज पार्टी के खिलाफ अनशन करेंगे। सचिन पायलट का आरोप है कि गहलोत ने बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सरकार के समय हुए भ्रष्टाचार पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। जिसके कारण उन्हें ये अनशन करना पड़ रहा है। इसके अलावा पायलट ने उन चिट्ठी को भी सार्वजनिक कर दिया जो गहलोत को लिखी गई थी। इस दौरान उन्होंने एक चिट्ठी का ज्रिक भी किया जिसमें गहलोत सरकार पर आरोप लगाए गए थे कि पार्टी द्वारा वसुंधरा राजे की सरकार पर किए गए सरकारी आबकारी माफिया, अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और ललित मोदी हलफनामें वाले मामलों में सरकार कार्रवाई करने में विफल रही हैं।
वहीं राजनीतिक पंडितों का अनुमान है कि 40 साल के सियासी सफर में बड़े नेताओं को मात देकर सत्ता हासिल करने वाले अशोक गहलोत के लिए सचिन पायलट सियासी तौर पर काफी बड़ी चुनौती बन गए है। भले ही अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए हो लेकिन पिछले चार साल से पायलट ने राजनीतिक तौर पर गहलोत सरकार को काफी चुनौतियां दी है। अब अनशन के ऐलान के बाद पायलट एक बार फिर अपनी ही सरकार के लिए सिरदर्द बन चुके हैं। बता दें ऐसा पहली बार नहीं है जब पार्टी के खिलाफ जाकर उन्होंने ऐसा किया हो इससे पहले भी सचिन पायलट बगावत के तेवर दिखा चुके है।
गहलोत और पायलट में सियासी रस्साकशी आज से नहीं बल्कि 2018 के चुनाव के बाद से ही चल रही है। बता दें, 2018 के नवंबर महीने में हुए चुनावों में कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी थी। उस समय कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में राज्य में मुख्यमंत्री की गद्दी किसको मिले इसके लिए दोनों नेता आमने-सामने आ गए थे। इस दौरान जहां सचिन पायलट कांग्रेस के अध्यक्ष होने के अलावा बीजेपी के खिलाफ पांच सालों तक किए संघर्ष के आधार पर मुख्यमंत्री बनने की मांग कर रहे थे। वहीं गहलोत वरिष्ठता के अलावा अपने ज्यादा विधायकों के समर्थन के आधार पर अपना हक जता रहे थे।
हालांकि बाद में कांग्रेस क्योंकि विधानसभा में बहुमत पाने के लिए 2 सीटों से दूर थी जिसके बाद गहलोत ने बसपा के 6 और 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में जुटा लिया था। इसके अलावा दिल्ली में गहलोत की नजदीकी होने के कारण उनका मुख्यमंत्री बनना तय हो गया। ऐसे में पार्टी के फैसले से नाराज पायलट ने पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिया। जिसके बाद दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाकर सुलह कराई गई और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम का पद दिया गया। हालांकि इस दौरान पायलट के समर्थकों का दावा है कि पार्टी हाईकमान द्वारा सीएम के लिए ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तय किया गया था। लेकिन बाद में गहलोत-पायलट के बीच मनमुटाव की खबरें सामने आने लगी।
बता दें, राजस्थान में कड़ी मेहनत करने के बाद सचिन पायलट के मन में ये लगातार पीड़ा थी कि वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बन सकते थे, और गहलोत उनका हक मार गए। इस दौरान उन्होंने अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि यानी 11 जून 2020 को 35 से 40 विधायकों के साथ बगावत करने की योजना बनाई, लेकिन सूचना के लीक होने के अलावा कई विधायकों के अनुपस्थित रहने से बगावत नहीं हो सकी। इसके बाद जुलाई 2020 में करीब डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ पायलट ने बगावत कर गहलोत का तख्ता पलटने की कोशिश की। इस दौरान पायलट के समर्थक मानेसर के होटल में ठहरे हुए थे। इस दौरान सरकार के सामने संकट खड़ा हुआ और गहलोत भी अपने 80 समर्थक विधायकों के साथ 34 दिनों तक पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के होटलों में रहे।
इस दौरान पार्टी ने पायलट को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिल पाई। सचिन पायलट ने भी इस मामले पर चुप्पी साध ली। हालांकि बाद में पायलट के समर्थकों द्वारा किए गए ट्वीट से जानकारी मिली की पार्टी के नेता बगावत कर चुके है। इसके बाद 14 जुलाई 2020 को पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से बर्खास्त कर दिया गया। इसके अलावा पार्टी ने रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह को भी मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया। वहीं बगावत को लेकर गहलोत ने पायलट के लिए गद्दार से लेकर निकम्मा जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी किया। हालांकि बाद में प्रियंका गांधी और सचिन पायलट की मुलाकात के बाद कुछ शर्तों के साथ पायलट ने बगावत करने का फैसला वापस ले लिया और 14 अगस्त 2020 को गहलोत बहुमत साबित करने में कामयाब रहे।
बता दें, पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए कांग्रेस आलाकमान का संदेश लेकर पर्यवेक्षक के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन जयपुर पहुंचे थे। इस दौरान गहलोत के आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी, जहां गहलोत गुट के विधायक ही नहीं पहुंचे थे। इस दौरान गहलोत को लगने लगा था कि विधायक दल की बैठक के बहाने उनकी कुर्सी पर पायलट को बैठाने की योजना बनाई जा रही है। जिसके बाद उन्होंने अपने विधायकों के जरिए पार्टी अलाकमान को साफ कर दिया कि वह पायलट को सीएम के तौर पर कुबूल नहीं करेंगे। यहां तक कि उन्होंने एक साथ देर रात स्पीकर के घर पर पहुंच कर सामूहिक इस्तीफा देने का भी ऐलान कर दिया था।
बता दें, सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही पार्टियों के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। जहां गहलोत पार्टी का वर्तमान है वहीं पायलट भविष्य ऐसे में पार्टी किसी एक को चुनने की स्थिति में नहीं है और एक-एक कदम फूंक- फूंक कर रख रही है। जहां पार्टी पिछले चार सालों से इस संकट को टाल रही है। वहीं सचिन पायलट इस बार पूरी तरह से आरपार के मूड में है। बता दें, राजस्थान विधानसभा चुनावों में अब केवल 6 महीने बचे हुए ऐसे में देखना होगा पायलट का ये अनशन पार्टी के अंदर कितना असर डाल सकता है, और इसके द्वारा गहलोत को अपनी कुर्सी बचाने के लिए किस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
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