नई दिल्ली: अगर नेहरू गांधी परिवार के लोगों को छोड़ दिया जाए और आपको पूछा जाए कि सबसे ताकतवर कॉन्ग्रेस प्रेसीडेंट कौन रहा है तो एक ही नाम सामने आएगा और वो है कामराज का. उन्हें आजादी के बाद की राजनीति का किंगमेकर भी कहा जाता है. लाल बहादुर शास्त्री हों या इंदिरा गांधी, दोनों अगर भारत के प्रधानमंत्री बने तो उसके पीछे कामराज का ही हाथ था और ये वो वक्त था जब कामराज खुद पीएम बनना चाहते तो कोई भी रोकने वाला या ऐतराज जताने वाला नहीं था. इंदिरा गांधी को पहले पीएम बनने के लिए और बाद में कामराज को अपने रास्ते से हटाने के लिए, इतनी मेहनत करनी पड़ी कि उनके पसीने छुड़ा दिए.
बहुत कम लोगों को पता होगा कि आज जिस मिड डे मील को लेकर इतना सारा बखेडा खड़ा होता है, भारत में स्कूलों में पहली मिड डे मील योजना कुमार स्वामी कामराज या के कामराज ने तब शुरू की थी, जब वो मद्रास के मुख्यमंत्री थे. आजादी के आंदोलन में कई बार गिरफ्तार हुए कामराज ने तकरीबन दस साल जेल मे गुजारे. ऐसे में 1954 में जब वो मद्रास के मुख्यमंत्री चुने गए तो लोग तब चौंके जब उन्होने अपने विरोधियों सी सुब्रमण्यम और एम भक्त वत्सलम को भी अपनी केबिनेट में शामिल कर लिया. मिड डे मील, फ्री यूनीफॉर्म जैसी कई योजनाओं के जरिए स्कूली व्यवस्था में कामराज ने इतना जबरदस्त सुधार किया कि जो साक्षरता ब्रिटिश राज में महज 7 फीसदी थी, वो 37 फीसदी तक पहुंच गई. चेन्नई के मरीना बीच पर आज जो कामराज का स्टेच्यू लगा है, वो उनका अकेला नहीं है बल्कि बगल में दो बच्चों का स्टेच्यू भी, जो कामराज के एजुकेशन फील्ड में किए गए काम को एक श्रद्धांजलि है.
कामराज लगातार तीन बार तब के मद्रास और आज के तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर चुने गए, लेकिन 1962 में चीन से हार के बाद कामराज को लगा कि कि बतौर पार्टी कांग्रेस जनता के बीच अपना भरोसा खोती जा रही है. 1963 में उन्होंने पंडित नेहरू को ये सुझाव दिया कि बड़े नेताओं, मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को अपनी गद्दी छोड़कर पार्टी के सांगठनिक कार्य में लगाना होगा तभी पार्टी मजबूत हो सकती है. ये सुझाव भारतीय राजनीति और कांग्रेस के इतिहास में ‘कामराज प्लान’ के नाम से जाना जाता है. इस प्लान के तहत 6 केन्द्रीय मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों ने अपनी पोस्ट से इस्तीफा दिया और कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी ले ली. जिनमें कई बड़े चेहरे शामिल थे, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, बीजू पटनायक, एस के पाटिल आदि.
नेहरूजी उस वक्त चीन से हार के बाद सदमे में थे और उनको लगा कि कामराज पार्टी को एक नई दिशा दे सकते हैं, उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी देनी पड़ेगी. कामराज का इस्तीफा लेकर कांग्रेस का प्रेसीडेंट चुन लिया गया. कामराज प्लान की वजह से कामराज की ताकत कांग्रेस के अंदर इतनी बढ़ गई कि नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस में वो सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे, जबकि उनको राष्ट्रीय राजनीति में आए महज एक साल ही हुआ था.
जब पंडित नेहरू की मौत हुई तो गुलजारी लाल नंदा को कार्य़वाहक पीएम बनाने से लेकर मोरारजी देसाई और इंदिरा की बजाय शास्त्रीजी को चुनने का फैसला हो या शास्त्रीजी की मौत के बाद फिर मोरारजी देसाई की जगह इंदिरा को पीएम बनाने का फैसला हो, या फिर इंदिरा केबिनेट में शास्त्रीजी की केबिनेट के मंत्रियों को समाहित करना हो, कामराज ने मजबूती से फैसले लिए. खुद पीएम बनने की ताकत होने के वाबजूद उन्होंने ये कह दिया कि मुझे ना हिंदी आती है और ना अंग्रेजी, मैं कैसे पीएम बन सकता हूं. लेकिन बाद में इंदिरा गांधी को हर काम में उनका फैसले लेने की आदत पसंद नहीं आई, इंदिरा ने उनके चुने प्रेसीडेंट कैंडिडेट की जगह निर्दलीय वीवी गिरी को सपोर्ट देकर देश का प्रेसीडेंट बनवा दिया. इंदिरा उनकी अगुवाई में चल रहे गैर हिंदी भाषी कांग्रेस नेताओं के सिंडीकेट को तोड़ना चाहती थीं. 1967 के चुनावों में कामराज खुद हार गए, बाद में कामराज के गुट के ही निंजालिंगप्पा प्रेसीडेंट बने, 1969 में उन्होंने इंदिरा को निकाल दिया. पाटी दो भागों में बंट गई और कामराज गुट कांग्रेस (ओ) में चला गया, बाद में कामराज तमिलनाड़ु जाकर राष्ट्रीय राजनीति से दूर हो गए.
दिलचस्प बात ये है कि देश मे इमरजेंसी के वक्त 2 अक्टूबर 1975 को उनकी मौत हुई तो ये वही दिन था, जिस दिन 12 साल पहले यानी 1963 में उन्होंने तमिलनाडु की सीएम पोस्ट से इस्तीफा दिया था. दिलचस्प बात ये भी है कि इंदिरा से उनकी तमाम अदावत रही लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने ही इमरजेंसी के दौरान यानी 1976 में उनको मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की. कहीं ना कहीं इंदिरा गांधी भी ये समझती थीं कि कामराज ने कांग्रेस और देश की भलाई के लिए काफी कुछ किया था.
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