राजनीति

हुकूमत में कायम लेकिन PM पद ठुकराया, आख़िर क्यों याद रहेगी सोनिया की सियासी पारी

नई दिल्ली: सोनिया गाँधी 1965 में कैंब्रिज में राजीव गाँधी से मिलीं और तीन साल बाद 1968 में भारत आ गईं। परिवार के मनाने के बाद राजीव गाँधी ने उनसे शादी की और फिर यहीं रहने लगीं। साल 1997 में पार्टी के कलकत्ता अधिवेशन में वे कांग्रेस में शामिल हुई और 26 साल बाद रायपुर अधिवेशन में उन्होंने राजनीतिक पारी को खत्म करने का इशारा दिया। सोनिया गाँधी को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह तो यह भी नहीं चाहती थी कि राजीव गाँधी राजनीति में आएं। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। राजीव गाँधी ने न केवल राजनीति में प्रवेश किया बल्कि प्रधानमंत्री भी बने और देश का नेतृत्व भी किया।

पति के निधन के बाद राजनीती में आईं

राजीव गाँधी की मृत्यु के कुछ साल बाद सोनिया को भी राजनीति में आना पड़ा। कांग्रेस सदस्यता ग्रहण करने के दो महीने के भीतर, उन्हें पार्टी अध्यक्ष नामित किया गया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस और देश दोनों को बेहतर नेतृत्व देने का प्रयास किया। अपने इस प्रयास में भी काफी सफल रही सोनिया गाँधी अब 77 साल की हो चुकी हैं जबकि राजनीति में ढाई दशक से ज्यादा का अनुभव है। इस उम्र में अगर सोनिया पीछे मुड़कर देखें तो आप अपने दम पर कुछेक बड़ी उपलब्धियां पाएंगी।

 

1. सोनिया ने संकट में पार्टी को मजबूत नेतृत्व दिया

राजीव गाँधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। फिर 1996 में जब चुनाव हुए तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। अध्यक्ष थे… सीताराम केसरी। तब उनके नेतृत्व पर पी चिदंबरम, माधवराव सिंधिया, अर्जुन सिंह, राजेश पायलट और ममता बनर्जी सहित कई कांग्रेस नेताओं ने सवाल उठाए थे। कई नेताओं ने अलग-अलग दल बना लिए। उस समय , सोनिया गाँधी औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल हुईं और कलकत्ता अधिवेशन में प्राथमिक सदस्यता प्राप्त करने के दो महीने के भीतर उन्हें पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनकी हिंदी भी अच्छी नहीं थी। अन्य बाधाएँ भी थीं। लेकिन चुनौतियों से पार पाते हुए उन्होंने लगातार कांग्रेस को मजबूत नेतृत्व दिया है।

 

2. प्रधानमंत्री पद का मोह नहीं, पीछे रहकर किया नेतृत्व

साल 1991 में राजीव गाँधी की हत्या के बाद सोनिया गाँधी को न सिर्फ पार्टी में शामिल होने का ऑफर दिया गया, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए भी आमंत्रित किया गया। लेकिन इसके लिए उन्होंने साफ मना कर दिया। बाद में वह पार्टी अध्यक्ष बनीं और उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2004 और 2009 में लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीता। दोनों मौकों पर सोनिया गाँधी के पास मौके थे। वह अगर चाहती तो पीएम बन सकती थीं। लेकिन वह पीछे खड़े होकर काम करने तैयार थीं।

 

3. देश को दो बार स्थिर सरकार दी

राजीव गाँधी की हत्या के बाद हुए 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। इसके अलावा 1998 और 1999 में, सफलता प्राप्त करना संभव नहीं था। आम चुनाव 2004 में अध्यक्ष सोनिया गाँधी थी। अपनी राजनीतिक रणनीति से वे विपक्ष को एकजुट करने में कामयाब रहीं और 543 में से केवल 145 सीटें जीतकर भी वे अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रहे। अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए नामांकित किया और सहयोगियों को खुश रखते हुए देश को एक स्थिर सरकार दी। 2009 में फिर जीती। इस बार उन्होंने 206 सीटें जीतीं और बीजेपी को पछाड़ दिया।

 

4. कांग्रेस सरकार के कई अहम फैसलों में भूमिका

साल 2004 से 2009 और फिर 2009 से 2014 तक कांग्रेस सरकार ने कई उपलब्धियां हासिल की और सभी अहम फैसलों में सोनिया गाँधी ने अहम भूमिका निभाई। इस दौरान देश ने उच्च विकास दर भी हासिल की। कांग्रेस का कहना है कि मनमोहन सिंह की सरकार आर्थिक मोर्चे पर सफल रही है। साल 2004 से 2014 तक मनरेगा, खाद्य सुरक्षा अधिनियम, डीबीटी, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार कांग्रेस सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां मानी जाती हैं।

 

2024 के चुनाव सोनिया गाँधी के बिना

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रायपुर कांग्रेस अधिवेशन में अपने राजनीतिक प्रवेश को समाप्त करने का संकेत दिया। साफ है कि कांग्रेस 2024 का लोकसभा चुनाव बिना सोनिया गाँधी के ही लड़ेगी। सोनिया गाँधी ने शनिवार को रायपुर में कहा कि उनकी उनकी राजनीतिक पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है। डॉ. मनमोहन सिंह के सक्षम नेतृत्व और 2004 और 2009 में हमारी जीत से मुझे व्यक्तिगत संतुष्टि मिली, उन्होंने कहा, लेकिन मुझे खुशी है कि उनकी सियासी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हुईं, जो कांग्रेस के लिए एक अहम मोड़ साबित हुई है।

 

 

 

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