पटना, बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार जा चुकी है, नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपा है और 160 विधायकों के समर्थन का दावा भी पेश किया है. वहीं, अब नीतीश राबड़ी आवास पहुँच गए हैं, कहा जा रहा है राबड़ी आवास में नई सरकार को लेकर मंथन हो रहा है. इस बातचीत […]
पटना, बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार जा चुकी है, नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपा है और 160 विधायकों के समर्थन का दावा भी पेश किया है. वहीं, अब नीतीश राबड़ी आवास पहुँच गए हैं, कहा जा रहा है राबड़ी आवास में नई सरकार को लेकर मंथन हो रहा है. इस बातचीत के बाद जेडीयू और आरजेडी साझा प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं. वहीं, अब नीतीश तेजस्वी यादव के साथ राजभवन के लिए निकल गए हैं. बिहार में आए इस राजनीतिक भूचाल के स्पष्ट कारणों पर इस समय कुछ कहना तो जल्दबाज़ी होगी, लेकिन गौर करें तो 2010 से की जा रही विशेष राज्य के दर्जे की मांग और 5 साल पहले केंद्र से मांगे गए स्पेशल पैकेज की अनदेखी भी नीतीश के इस कदम की बड़ी वजह मानी जा रही है.
5 साल पहले साल 2017 में नीतीश कुमार ने बिहार की सेहत सुधारने का दावा करते हुए आरजेडी का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामा था. उस समय उन्होंने केंद्र सरकार से राज्य के डेवलपमेंट के लिए 2.75 लाख करोड़ रुपये के स्पेशल पैकेज की मांग की थी, वहीं इस ेपहले नीतीश कुमार ने अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर ये भी कहा था कि बिहार और बिहार की जनता के लिए अगर मुझे बार-बार याचक के तौर पर किसी के दरवाजे खटखटाने पड़े, तो इसमें मुझे कोई संकोच नहीं है.
नीतीश कुमार की स्पेशल पैकेज की मांग और भाजपा के साथ आने के बाद ऐसा लग रहा था कि बिहार के अच्छे दिन आने वाले हैं. लेकिन 5 साल बाद भी इस पैकेज को लेकर बात आगे नहीं बढ़ सकी, ऐसे में नीतीश की मांग पर केंद्र की अनदेखी को भी दोनों के बीच की तकरार की बड़ी वजह माना जा रहा है. हालांकि, भाजपा की ओर से कहा गया कि बिहार के लिए 1.25 लाख करोड़ का बड़ा पैकेज दिया गया.
बिहार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग अभी से नहीं बल्कि साल 2010 से की जा रही है और अभी तक ये मांग पूरी नहीं हो सकी. नीतीश कुमार ने 17 मार्च 2013 को एक बड़ी अधिकार रैली भी निकाली थी और दिल्ली के रामलीला मैदान में डेरा जमाकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की भी मांग की थी. हाँ ये ज़रूर है नीतीश के भाजपा का दामन थामने के बाद इस मांग के पूरा होने की उम्मीदों को पंख जरूर लगे थे. लेकिन, केंद्र सरकार की ओर से इस मामले पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका है. विशेष राज्य की मांग पर केंद्र की बेरुखी को भी बिहार में उठे सियासी घमासान की वजह माना जा रहा है.
दरअसल, बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा इसलिए जरूरी है क्योंकि यह देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है. वहीं, राज्य के 38 जिलों में से 15 जिलों को बाढ़ प्रभावित जिला किया गया है, जबकि ज्यादातर आबादी के खेती-किसानी पर निर्भर होने के कारण बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है और हर साल इस विपदा से करोड़ों की संपत्ति का नुकसान भी होता है. इसके अलावा सिंचाई के साधनों की कमी समेत और भी कई कारण हैं, जिसके चलते बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने को जरूरी बताया गया है.
जिन प्रदेशों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है, उन्हें केंद्र सरकार से 90 फीसदी अनुदान दिया जाता है. यानी केंद्र उस राज्य को जो फंडिंग देती है, उसमें से 90 फीसदी अनुदान के तौर पर, जबकि 10 फीसदी बिना ब्याज के मिलती है, साथ ही ऐसे राज्यों को एक्साइज, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स और कस्टम में भी छूट दी जाती है. जबकि सामान्य राज्यों को केंद्र से की जाने वाली फंडिंग में महज 30 फीसदी रकम अनुदान के तौर पर दी जाती है.
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