यूपी। उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब भारतीय जनता पार्टी का झंडा जमकर लहरा रहा है. विधानसभा चुनाव के बाद अब विधान परिषद सदस्य के चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की है. अखिलेश यादव की साइकिल पंचर हो गई है और उनकी पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई है. बुरी […]
यूपी। उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब भारतीय जनता पार्टी का झंडा जमकर लहरा रहा है. विधानसभा चुनाव के बाद अब विधान परिषद सदस्य के चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की है. अखिलेश यादव की साइकिल पंचर हो गई है और उनकी पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई है.
समाजवादी पार्टी के गढ़ में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने उन्हें हराया. इतना ही नहीं इस बार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बेहद करीबी नेताओं को भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. समाजवादी पार्टी का खाता 36 सीटों पर नहीं खुला. भाजपा ने 33 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो पर जीत हासिल की. एक पर जनसत्ता दल की जीत हुई. इस बार विधानसभा परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी का खाता नहीं खुल सका. उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी को 36 में से 20 सीटों पर 30 फीसदी से भी कम वोट मिले. इस बार समाजवादी पार्टी 20 से ज्यादा सीटों पर लड़ाई से बाहर रही.
इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के बेहद करीबी लोगों को एमएलसी चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. बस्ती-संत कबीर नगर-सिद्धार्थ नगर सीट से निवर्तमान विधान परिषद सदस्य संतोष यादव उर्फ सनी यादव ने बीजेपी के सुभाष यदुवंश को हराया. सनी यादव के खिलाफ पहले तो सुभाष की लड़ाई बहुत कठिन मानी जाती थी. इस सीट पर सबसे ज्यादा 6401 वोटर हैं, जिनमें यादव और मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं.
इधर, सपा को अपने मुस्लिम-यादव समीकरण और राम प्रसाद चौधरी के भरोसेमंद कुर्मी वोट के कारण जीत का भरोसा था. सुभाष यदुवंश के सामने यह चुनौती इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि बस्ती में भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा की पांच-चार सीटों का नुकसान हुआ था. भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुभाष ने सभी जातिगत समीकरणों को धता बताते हुए 4280 मतों से चुनाव जीता. इस चुनाव में सुभाष यदुवंश को जहां 5167 वोट मिले, वहीं अखिलेश के करीबी रहे संतोष सनी यादव को सिर्फ 887 वोट मिले.
बाराबंकी से अखिलेश यादव के करीबी राजेश यादव और लखनऊ-उन्नाव सीट से सुनील यादव भी चुनाव हार गए. इतना ही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी रहे आनंद भदौरिया ने इस बार एमएलसी का चुनाव नहीं लड़ा, जबकि उदयवीर सिंह अपना नामांकन ही नहीं कर सके.