Smriti Irani Amethi MP Victory Profile: लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल किया. इस पूरे नतीजे से ज्यादा चर्चा एक सीट की हुई. अमेठी लोकसभा जो कांग्रेस के गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है वहां से स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को चुुनाव में हरा दिया है. स्मृति इसके बाद अपने एक कार्यकर्ता के मौत के बाद उसकी अर्थी को कंधा देने भी अमेठी पहुंचीं. अमेठी में अब राहुल की वापसी मुश्किल नजर आती है.
अमेठी. कांग्रेस के प्रथम परिवार गांधी परिवार का खास नाता अमेठी लोकसभा सीट से रहा है. संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के बाद वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी के सांसद थे. एक सप्ताह पहले तक. 23 मई 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही बीजेपी की प्रचंड जीत से ज्यादा चर्चा अमेठी से राहुल गांधी की हार की रही. राहुल गांधी को हराने वाली बीजेपी की स्मृति ईरानी अब अमेठी की नई सांसद हैं. कभी टेलीविजन पर आदर्श बहू का किरदार निभाने वाली स्मृति ईरानी ने चुनाव जीतने के तीन दिन बाद ही आदर्श नेता की छवि भी स्थापित कर ली है. रविवार को स्मृति ईरानी के करीबी सहयोगी सुरेंद्र प्रताप सिंह की अमेठी में हत्या हो गई. स्मृति ईरानी न सिर्फ अंतिम यात्रा में शामिल हुईं बल्कि उन्होंने अर्थी को कंधा भी दिया. अपने कार्यकर्ता के लिए स्मृति के इस कदम के बाद स्मृति ईरानी ने खम ठोक कर अमेठी में खुद को स्थापित कर लिया है. स्मृति ईरानी की चर्चा अमेठी की हर गली में हो रही है. एक नजर डालते हैं स्मृति ईरानी के सफर पर.
क्योंकि स्मृति भी कभी तुलसी थीं
क्योंकि सास भी कभी बहू थी सीरियल आया करता था स्टार प्लस पर. पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान अमेठी सांसद स्मृति ईरानी (तब स्मृति मल्होत्रा) उसमें तुलसी का किरदार निभाया करती थीं. तुलसी पूरे देश के लिए आदर्श बहू थी. सिर्फ भारत ही नहीं, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश के अलावा उन तमाम देशों में जहां भारतीय रहते हैं सब तुलसी के मुरीद थे. पाकिस्तान में तो तुलसी की लोकप्रियता का आलम ये था कि समय-समय पर कई मौलवियों ने फतवा जारी कर महिलाओं से सीरियल देखने से मना किया लेकिन तुलसी का जादू चलता रहा. हर मां अपने लिए तुलसी जैसी बहू की चाहत रखती थी, हर बेटे को वैसी ही पत्नी चाहिए थी. तुलसी एक आदर्श गृहणी थी.
हार, आलोचना, डिमोशन
अब फ्लैशबैक से वर्तमान में आते हैं. 2014 में तुलसी ईरानी दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं. कांग्रेस के प्रथम परिवार गांधी परिवार की पारंपरिक सीट अमेठी पर. उनके सामने थे कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी. एकतरफा मुकाबला था लेकिन स्मृति वोटिंग के कुछ दौर में राहुल गांधी से आगे रहीं. टीवी पर ब्रेकिंग चलने लगी लेकिन नतीजा वहीं आया जिसकी सबको उम्मीद थी. राहुल गांधी आसानी से चुनाव जीत गए. हार के बावजूद स्मृति को केंद्रीय मंत्री बनाया गया. उन्हें मानव संसाधन मंत्री का दर्जा मिला लेकिन यहीं से शुरू हुआ स्मृति ईरानी का डिग्री विवाद. सोशल मीडिया ने उन पर खूब मीम्स बनाए कि कैसे एक 12वीं पास देश की उच्च शिक्षा की दशा-दिशा तय करेंगी. इस दौरान स्मृति कई बार विवादों में आईं. कभी किसी तांत्रिक के पास जाने की वजह से तो कभी सदन में मायावती के सामने अपना सर काटकर कदमों में रख देने के फिल्मी डायलॉग की वजह से. जल्द ही उनसे मानव संसाधन मंत्रालय छीन लिया गया और कपड़ा मंत्रालय थमा दिया गया. साफ तौर पर यह स्मृति का डिमोशन था.
हारने के बाद भी अमेठी से जुड़ी रहीं स्मृति
इस दौर में भी स्मृति ईरानी अमेठी जाती रहीं. लोगों से मिलती रहीं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार के मार्फत अमेठी के लिए कई योजनाएं स्वीकृत करवाईं. अमेठी की जनता को वह यह संदेश देने में कामयाब रहीं कि वो सिर्फ चुनाव भर के लिए नहीं थीं. याद कीजिए तब आम आदमी पार्टी की तरफ से कुमार विश्वास भी अमेठी से चुनाव लड़े थे. बुरी तरह हारने के बाद विश्वास ने दोबारा अमेठी की तरफ मुड़कर नहीं देखा लेकिन स्मृति ईरानी लगातार अमेठी जाती रहीं. मोदी सरकार की हर योजना का लाभ लोगों को मिले इसका प्रयास करती रहीं. अमेठी के संगठन पर “स्मृति दीदी” का पर्याप्त असर है. आम जनता से भी स्मृति ईरानी मिलती रही हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी आए भी तो गेस्ट हाउस तक सीमित रहे.
जब स्मृति के उछाले पत्थर ने आसमान में किया सुराख..
अब आते हैं 23 मई 2019 की तारीख पर. देश नतीजे का इंतजार कर रहा था. एक्जिट पोल के अनुमानों के मुताबिक ही बीजेपी की अगुवाई में एनडीए प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्ता में वापस आया. बीजेपी को अकेले ही बहुमत से कहीं ज्यादा 303 लोकसभा सीटें मिलीं लेकिन जिस एक सीट की चर्चा नतीजे के बाद सबसे ज्यादा हुई वो थी अमेठी लोकसभा सीट. राहुल गांधी इस बार अमेठी के अलावा केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे थे. शायद उन्हें अमेठी में कुछ अनहोनी का अंदेशा हो गया था. हालांकि अमेठी में उनकी जीत को लेकर किसी के मन में कोई शंका नहीं थी सिवाय स्मृति इरानी के. हाल ही में भाजपाई से कांग्रेसी हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने तो यहां तक कह दिया कि अगर राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हारेंगे तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा. 23 मई को ट्विटर पर टॉप ट्रेंड बीजेपी की जीत नहीं बल्कि “सिद्धू राजनीती छोड़ो” चल रहा था. अनहोनी हो गई थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार चुके थे. स्मृति ईरानी ने ट्विटर पर लिखा, “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता…”
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता …
— Smriti Z Irani (@smritiirani) May 23, 2019
ये दरअसल क्रांतिकारी गजलों के पुरोधा दुष्यंत कुमार के शेर का आधा हिस्सा था. दुष्यंत ने कहा था,
“कौन कहता है आसमान में सराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”
स्मृति ईरानी ने अमेठी में राहुल गांधी पर निर्णायक बढ़त बना ली है…
मुख्य विपक्षी दल के सबसे बड़े नेता को हराकर स्मृति को जाइंट किलर जैसे कई उपनाम सोशल मीडिया पर दिए गए. लेकिन स्मृति ने चुनाव के बाद पूरी अमेठी का दिल जीता नतीजों के ठीक 3 दिन बाद. अमेठी में स्मृति ईरानी के करीबी कार्यकर्ता सुरेंद्र की हत्या हो गई. स्मृति ईरानी भी चाहतीं तो ट्विटर पर रोष, दुख जता सकती थीं लेकिन वो सीधा अमेठी गईं. अपने कार्यकर्ता के अंतिम संस्कार में शामिल हुईं. इस कहानी में निर्णायक मोड़ तब आया जब कार्यकर्ता सुरेंद्र की अर्थी उठी तो उसमें सबसे पहला कंधा स्मृति ईरानी का था. हिंदू मान्यता में आम तौर पर महिलाओं को अर्थी को कंधा देने की मनाही होती है लेकिन हमने देखा है कि पिछले कुछ समय में कई बहादुर लड़कियों ने इस मान्यता को तोड़ा है.
This photograph isn’t of a politician doing lip service. It isn’t of a Neta seeking votes. Nor is it of a dynast looking for publicity. Amethi MP @smritiirani lends shoulder to mortal remains of close aide Surendra Singh who was shot dead. Moving image. Brave. Can’t be forgotten. pic.twitter.com/EP5dycpTJa
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) May 26, 2019
स्मृति ईरानी के इस कदम ने उनके विरोधियों को भी उनका मुरीद बना दिया. सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा- अमेठी को अपना बेटा अब मिला है. स्मृति ईरानी अमेठी की जीत को तुक्का नहीं बनने देना चाहतीं. रविवार को उन्होंने जिस जुड़ाव और हिम्मत का परिचय दिया है वो अमेठी के लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ेगा. यह देश बुरे वक्त में साथ देने वाले को कभी नहीं भूलता. स्मृति भले अपने कार्यकर्ता के लिए अमेठी गई हों लेकिन उनके इस कदम ने उनके विरोधियों की नजर में भी उनका सम्मान बढ़ा दिया है.
#WATCH BJP MP from Amethi, Smriti Irani lends a shoulder to mortal remains of Surendra Singh, ex-village head of Barauli, Amethi, who was shot dead last night. pic.twitter.com/jQWV9s2ZwY
— ANI (@ANI) May 26, 2019
पहले से बेहतर नेता नजर आ रही हैं स्मृति
स्मृति ईरानी अब पहले से कहीं ज्यादा शांत, विन्रम और समझदार राजनेता लग रही हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को संभवत: अमेठी छोड़नी ही पड़ जाए. क्योंकि स्मृति ईरानी अमेठी का दिल जीत चुकी हैं और अगले पांच सालों में वह जनता से अपना रिश्ता और मजबूत करने की कोशिश करेंगी. राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं के दायरे से बाहर नहीं निकल पाए. अमेठी की जनता कांग्रेस के युवराज से सीधे मिल नहीं पा रही थी. राहुल गांधी अमेठी बहुत कम बार जा पाए. अमेठी के जनादेश ने आने के कारण को भी समाप्त कर दिया है. अमेठी की जंग खत्म नहीं हुई बल्कि अब शुरू हुई है. राहुल गांधी के गढ़ को छीन चुकी स्मृति ईरानी अब अपनी जगह मजबूत करेंगी जबकि राहुल गांधी अपना खोया जनाधार वापस पाने की कोशिश करेंगे. कौन अपने प्रयास में सफल रहा इसका फैसला होने में तो अभी 5 साल का वक्त है. पांच साल बहुत होते हैं. महान समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था, “जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं“. अब इंतजार कौम को नहीं नेताओं को होगा. कौम तो अपना काम कर चुकी. स्मृति ईरानी अब राहुल गांधी की स्मृति से कभी ओझल नहीं होने जा रहीं.