लिंगायत समाज की नींव 12वीं सदी के संत और विचारक वस्वन्ना ने रखी थी. उनकी विचारधारा वीरशैव पद्धति का विरोध करती थी जो कि वेदों पर आधारित है और धर्म प्रधान समाज का समर्थक है. वहीं वस्वन्ना ने जिस पंथ की स्थापना की उसे ही लिंगायत के नाम से जाना जाता है. यह मनुवाद, जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था, सती प्रथा और बाल विवाह का विरोध करता है. वस्वन्ना ने दलित पिछड़ों को एक ही पंक्ति में लाने का काम किया था.
बेंगलुरु: कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की कैबिनेट ने सोमवार को लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देते हुए केंद्र सरकार से कैबिनेट के इस प्रस्ताव को क़ानूनी दर्जा देने की मांग की है. हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए ये फैसला इतना आसान भी नहीं था. कैबिनेट की बैठक में काफी नोंकझोंक हुई क्योंकि चार लिंगायत मंत्रियों में से दो इसके पक्ष में थे तो दो इसके विरोध में. कुछ ऐसा ही विरोध और समर्थन सड़कों पर भी दिखा. जहां बेंगलुरु में लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने की खुशी में जश्न मनाया गया वहीं गुलबर्गा में इस फैसले का समर्थन और विरोध कर रहे लोग आपस में भिड़ गए. पुलिस को इन्हें क़ाबू में लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.
बेंगलुरू. विधानसभा और 2019 के आम चुनावों से पहले कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने एक बड़ा दांव खेला है. सिद्धारमैया सरकार की कैबिनेट ने सोमवार को लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देते हुए केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव पर कानूनी दर्जा देने की मांग की है. हालांकि इस प्रस्ताव पर कैबिनेट मीटिंग में काफी नोंकझोंक देखने को मिली क्योंकि चार लिंगायत मंत्रियों में से दो इसके पक्ष में थे तो दो विरोध में. ऐसा ही विरोध और सहमति का मिला जुला असर सड़क पर भी दिखा. लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने की खुशी में बेंगलुरू में जश्न मनाया गया, वहीं गुलबर्गा में इस फैसले का समर्थन और विरोध कर रहे लोग आपस में भिड़ गए.
सिद्दारमैया सरकार की कैबिनेट की मीटिंग के बाद मेडिकल एजुकेशन मंत्री और लिंगायत नेता एमबी पाटिल ने कहा कि कर्नाटक के सीएम ने ऐतिहासिक फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने लिंगायतों और वीरशेवाये के उन लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने का फैसला किया है जो लॉर्ड बसवा के मानने वाले हैं. इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा जा रहा है.
बता दें कि यह सीएम सिद्धारमैया का बहुत बड़ा सियासी दांव है क्योंकि लिंगायत करीब तीन दशक से बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं. कर्नाटक में इनकी संख्या करीब 19 फीसदी है. लिंगायत 1990 में राजीव गांधी के एक फैसले के चलते कांग्रेस से दूर हुए थे. राजीव गांधी ने लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटिल को एयरपोर्ट पर बुलाकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया था जिसे लिंगायतों के बीच उनके अपमान के तौर पर प्रचारित किया गया था. इसके बाद से लिंगायत पर कांग्रेस की पकड़ बहुत ढीली पड़ गई थी. ऐसे में सिद्धारमैया ने एक बार फिर उन्हें कांग्रेस के पाले में करने वाला कदम उठाया है. हालांकि अभी केंद्र सरकार को इसका फैसला लेना है. लेकिन चुनावों के चलते बीजेपी भी उन्हें नाराज करना नहीं चाहेगी.