क्या श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने गलत समय पर कह दी थी सही बात ?

नई दिल्ली, आज यदि कश्मीर में 370 नहीं है, दो झंडे नहीं हैं तो इसका पूरा श्रेय श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को जाता है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे. आज 6 जुलाई को उसी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 121वीं जयंती मनाई जा […]

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क्या श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने गलत समय पर कह दी थी सही बात ?

Aanchal Pandey

  • July 6, 2022 5:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली, आज यदि कश्मीर में 370 नहीं है, दो झंडे नहीं हैं तो इसका पूरा श्रेय श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को जाता है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के कट्टर आलोचक थे. आज 6 जुलाई को उसी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 121वीं जयंती मनाई जा रही है, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही जनसंघ की स्थापना की और आज की भारतीय जनता पार्टी जनसंघ का ही एक नया रूप है.

जनसंघ के संस्थापक

जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था, उनके पिता आशुतोष मुखर्जी कोलकाता के प्रतिष्ठित वकील थे. उन्होंने साल 1929 में राजनीति में कदम रखा और बंगाल विधान परिषद के सदस्य बनें, इतना ही नहीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के पहले उद्योग मंत्री थे लेकिन उन्होंने विरोध के चलते बहुत कम समय में ही नेहरू सरकार से इस्तीफा दे दिया था.

क्यों नेहरू सरकार से दिया था इस्तीफ़ा

श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के पहले उद्योग मंत्री थे और उन्होंने ही अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, मुख़र्जी ने तब नेहरू-लियाकत समझौते का विरोध किया था. ये वो दौर था जब भारत और पाकिस्तान विभाजन का दंश झेल रहे थे, इस समय सैकड़ों दंगा पीड़ित लोग इस सीमा से उस सीमा को पार करते रहते थे. ये वो वक्त था जब नागरिकों की पहचान और उन्हें स्थायित्व देने की बात कही जाती थी, और इसी समझौते के चलते देश में अल्पसंख्यक आयोग भी बनाए गए थे. इस समझौते पर दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने दस्तखत किए थे.

नेहरू-लियाकत समझौते के तहत दोनों देशों ने अपने-अपने देश में अल्पसंख्यक आयोग गठित किए थे, इस समझौते के लिए दोनों देशों के अधिकारियों के बीच दिल्ली में छह दिनों तक बातचीत भी हुई थी, इसे समझौते को दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है और इसी के विरोध में उद्योगमंत्री श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने नेहरू सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया था.

नेहरू-लियाकत समझौता मुर्दाबाद

मुखर्जी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के भीतर उनके प्रति नाराज़गी बहुत बढ़ गई थी. नेहरू की सरकार छोड़ने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जुलाई 1950 में दिल्ली में एक बैठक में भाग लिया, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उनका स्वागत किया गया तो हिंदू राष्ट्रवादी युवकों ने नारे लगाए नेहरू-लियाकत समझौता मुर्दाबाद !

जब जम्मू कश्मीर में घुसते ही गिरफ्तार किए गए मुख़र्जी

नेहरू की नीतियों के विरोध के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर जाकर अपनी बात कहना चाहते थे, लेकिन 11 मई 1953 को श्रीनगर में घुसते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उस समय वहां शेख अब्दुल्ला की सरकार थी, दो सहयोगियों समेत गिरफ्तार किए गए मुखर्जी को पहले श्रीनगर सेंट्रल जेल भेजा गया और फिर वहां से उन्हें शहर के बाहर एक कॉटेज में स्थानांतरित कर दिया गया.

श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की संदेहास्पद मौत

एक महीने से ज़्यादा कॉटेज में कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी. उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं, 19 व 20 जून की दरम्यानी रात उन्हें प्लूराइटिस हो गया, जो उन्हें पहले 1937 और 1944 में भी हो चुका था, जिसके बाद जेल में डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था. इंजेक्शन लगवाने से पहले मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर का कहना था कि ये दवा मुखर्जी के शरीर को सूट नहीं करती थी, फिर भी अली ने उन्हें भरोसा दिलाकर ये इंजेक्शन दिया था.

मुख़र्जी की तबियत खराब ही थी कि अचानक 22 जून को उन्हें हृदय के आसपास दर्द की शिकायत हुई और सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई, जिसके बाद मुखर्जी को अस्पताल में शिफ्ट किया गया, अस्पताल में पता चला कि मुख़र्जी को दिल का दौरा पड़ा था. कुछ ही घंटों बाद राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की सुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया. जिस अस्पताल में मुख़र्जी का इलाज हो रहा था, वहां एक नर्स उनकी देखभाल के लिए थीं राजदुलारी टिकू. टिकू ने बाद में अपने बयान में कहा कि जब मुखर्जी पीड़ा में थे तब उसने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था और ज़ुत्थी ने उनकी नाज़ुक हालत देखते हुए डॉ. अली को बुलाया और कुछ देर बाद 2:25 बजे मुखर्जी चल बसे थे.

नेहरू का मुख़र्जी की माँ को वो खत

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत के बाद 30 जून, 1953 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनकी मां जोगमाया देवी को पत्र लिखकर अपनी संवेदना व्यक्त की, जिसके बाद 4 जुलाई को उनकी मां जोगमाया देवी ने पत्र का जवाब दिया. इस पत्र में जोगमाया देवी ने लिखा कि, “मेरा बेटा बिना किसी मुकदमे के हिरासत में मर गया और आप कहते हैं, आप मेरे बेटे के हिरासत के दौरान कश्मीर गए थे. आप उसके प्रति अपने स्नेह की बात कर रहे हैं, मुझे आश्चर्य है कि आपको उससे व्यक्तिगत रूप से मिलने और स्वास्थ्य और व्यवस्थाओं के बारे में पूछने से किसी ने रोका था!”

 

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