लखनऊ. साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के सीएम अखिलेश यादव से उनके चाचा और तत्कालीन कबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव का रिश्ता कुछ ऐसे बिगड़ा कि एक घर में ही दूसरी नई पार्टी प्रगतीशील समाजवाजी पार्टी का जन्म हो गया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बन बैठे तो प्रसपा का जिम्मा शिवपाल ने अपना हाथ में रखा.
हालांकि, नेता मुलायम सिंह यादव दोनों पार्टियों के लिए बराबर जरूर रहे. वे दोनों ही पार्टियों के कार्यक्रमों में नजर भी आए लेकिन एक ही घर की दोनों पार्टियों के बीच झगड़ा खत्म नहीं करवा पाए. खैर जो नेता जी नहीं कर सके वो पीएम नरेंद्र मोदी की भाजपा ने कर दिया.
सत्ता से उतरकर 2 साल बाद शिवपाल सिंह यादव के सुर बदल गए. जो अभी तक अपने भतीजे अखिलेश पर तंज कसने से पीछे नहीं हटते थे, उन्होंने ही इटावा में यह ऐलान कर दिया कि वे सपा के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं, अगर अखिलेश भी ये बात मान जाएं तो 2022 में उनकी सरकार बन जाएगी.
शिवपाल बोले- मैं कई बार कह चुका, सीएम नहीं बनना चाहता
काफी समय बाद मंगलवार 19 नवंबर को इटावा के एक कार्यक्रम में शिवपाल यादव ने कहा कि वे समाजवादी पार्टी से संबंधों को लेकर खुलकर बात की. शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के लिए पूरी तरह तैयार हैं. उन्होंने आगे कहा कि अखिलेश यादव को भी इस बात के लिए मान जाना चाहिए.
शिवपाल सिंह यादव ने संकेत देते हुए ही सही लेकिन साफतौर पर कहा कि चाहे कुछ भी हो अगर सरकार बनी तो सीएम अखिलेश यादव ही होंगे. वे खुद भी कई बार कह चुके हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनना. शिवपाल ने आगे कहा कि अगर अखिलेश ये बात मान जाएं तो 2022 में हम प्रदेश में सरकार बना लेंगे.
मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि नेताजी के जन्मदिन को सैफई में पूरे परिवार के साथ एकजुट होकर मनाना चाहिए. उन्होंने आगे बताया कि 22 नवंबर को नेता जी के जन्मदिन पर प्रसपा पूरे प्रदेश में नेता जी का जन्मदिन मनाने जा रही है. तो इससे उनका कहने का अर्थ है कि सपा और प्रसपा मिलकर पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन मनाएं जिससे सूबे के लोगों में संदेश जाए कि यादव कुनबा अभी टूटा नहीं है.
शिवपाल यादव का करीब आना अखिलेश के लिए कितना फायदा?
जाहिर सी बात है कि जब घर में दो पार्टियां बन गई हैं तो आपस में उनकी विचारधाराएं नहीं मिलती. इसी वजह से शिवपाल ने सपा का हाथ भी छोड़ा. उसके बाद उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 लड़ा जिसमें शिवपाल तो हारे ही हारे, अखिलेश यादव मायावती की बसपा के गठबंधन के बावजूद कुछ कमाल नहीं दिखा पाए. यूपी विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद ये भी माना गया कि अखिलेश यादव को ज्यादा वोट न मिलने का एक बड़ा कारण है उनके परिवार का विवाद.
शिवपाल यादव जो समाजवादी पार्टी के जमीनी नेता माने जाते थे उनके जाने से काफी तबका नाराज भी था. जिस वजह से सपा पर जो मिलकर वोट आती थी वो नहीं मिल पाई. अब ऐसे में अगर शिवपाल यादव इतना खुलकर ऑफर दे रहे हैं तो शायद अखिलेश मान जाएं और अगला विधानसभा चुनाव सपा-प्रसपा मिलकर लड़े.
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