मुंबई, संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय ने आज हिरासत में ले लिया है और अब उनपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. ताजा जानकारी के मुताबिक, संजय राउत के घर से ईडी ने 11.50 लाख रुपये भी जब्त किए हैं, बता दें ईडी दफ्तर पहुंचने के बाद संजय राउत ने मीडिया से भी बात की. यहां उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र को कमजोर करने की साज़िश की जा रही है, लेकिन वह झुकेंगे नहीं. इस बीच संजय राउत के वकील ने दावा किया है कि उन्हें सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है, उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है. शिवसेना नेता के रूप में संजय राउत की लोकप्रियता बहुत है, आखिर पत्रकारिता से करियर की शुरुआत करने वाला शख्स राजनीति में इतनी ऊंचाई पर कैसे पहुंचा, आइए जानते हैं संजय राउत के राजनीतिक सफर की कहानी:
संजय राउत का जन्म 15 अक्टूबर 1961 को हुआ था, वह सोमवंशी क्षत्रिय पठारे समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. मुंबई के कॉलेज से बी.कॉम. करने के बाद वह पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए थे. वह एक मराठी अखबार में बतौर क्राइम रिपोर्टर काम करते थे. उनके अंडरवर्ल्ड में अच्छे सूत्र थे और क्राइम रिपोर्टर के तौर पर अच्छी पहचान भी थी. पत्रकारिता के दौरान ही वह राज ठाकरे के संपर्क में आए और उनकी अच्छी दोस्ती हो गई, उस समय राज ठाकरे शिवसेना में बड़े नेता हुआ करते थे.
संजय राउत क्राइम रिपोर्टर के तौर पर अच्छा काम कर रहे थे, इसी बीच शिवसेना के मराठी मुखपत्र सामना में वैकेंसी निकलीं, और ये वैकेंसी भी थी, कार्यकारी संपादक की. बालासाहेब ने इस पद के लिए संजय राउत को चुना. इसके बाद संजय राउत सामना का कार्यभार देखने लगे, वह इसमें काफी तीखे संपादकीय लिखा करते थे. बालासाहेब को उनकी लेखनी बहुत पसंद आई, फिर क्या था इसके बाद सामना का हिंदी एडिशन भी शुरू किया गया. संजय राउत की इसमें बड़ी भूमिका थी, जल्दी ही बालासाहेब के विचार और संजय राउत की लेखनी का तालमेल इतना अच्छा हो गया कि वह जो कुछ लिख देते थे उसे बालासाहेब का ही विचार मान लिया जाता था.
ठाकरे परिवार में जब फूट पड़ी तो संजय राउत ने राज ठाकरे का साथ छोड़ दिया और उद्धव ठाकरे का साथ पकड़ लिया. मुखपत्र सामना में भी वह राज ठाकरे पर हमला बोला करते थे, साल 2004 में शिवसेना ने पहली बार उन्हें राज्यसभा भेजा था. इसके बाद से वह उच्च सदन में शिवसेना की आवाज के रूप में जाने जाते रहे हैं.
इसके बाद शिवसेना और भाजपा को अलग करके महाविकास अघाड़ी सरकार बनवाने में भी संजय राउत की बहुत अहम मानी जाती है. चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे पहले उन्होंने ही एनसीपी चीफ शरद पवार से मुलाकात की थी, जिसके बाद भाजपा के सामने मुख्यमंत्री पद की शर्त रखने और फिर गठबंधन टूटने का सिलसिला शुरू हुआ.
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