नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचना जारी हो गई है और 24 सितंबर से नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी, 17 अक्टूबर को चुनाव होगा और 19 को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. अध्यक्ष पद को लेकर अशोक गहलोत, शशि थरूर और दिग्विजय सिंह के नाम सामने आ रहे हैं. इसमें […]
नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचना जारी हो गई है और 24 सितंबर से नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी, 17 अक्टूबर को चुनाव होगा और 19 को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. अध्यक्ष पद को लेकर अशोक गहलोत, शशि थरूर और दिग्विजय सिंह के नाम सामने आ रहे हैं. इसमें अशोक गहलोत का नाम तो तय माना जा रहा है. ऐसे में राजस्थान में नेतृत्व बदलाव को लेकर भी सियासत तेज है, लेकिन सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की राह में सिर्फ गहलोत ही नहीं बल्कि कई सियासी रोड़े हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष पद को संभालने के लिए अशोक गहलोत पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन राजस्थान में अपना सियासी उत्तराधिकारी सचिन पायलट को मानने के पक्ष में नहीं हैं, यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद पर गहलोत बने रहना चाहते हैं लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद ऐसा मुमकिन नहीं हो पाएगा. गहलोत ने अपनी ओर से ये स्पष्ट कर दिया है कि वह गुजरात विधानसभा चुनाव होने तक राजस्थान में बागडोर किसी और के हाथों में नहीं सौंपना चाहते हैं. फिर चाहे वह सचिन पायलट हों या ऐसा कोई उम्मीदवार ही जिसके नाम पर आम सहमति हो. गहलोत चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष भले ही बन जाएं, लेकिन वो राजस्थान नहीं छोड़ना चाहते हैं.
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भले ही उनके समर्थक कर रहे हैं, लेकिन उनके पास विधायकों का समर्थ नहीं है. बीते दिनों शक्ति प्रदर्शन के रूप में सीएम गहलोत ने विधायकों को अपने घर पर बुलाया था.यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को यह बताने का तरीका था कि उनके पास ज्यादातर विधायकों का समर्थन है.
राजस्थान सरकार में अशोक गहलोत के समर्थकों के साथ-साथ विधायक भी सचिन पायलट के नीचे काम नहीं करना चाहते हैं, उनमें से कुछ का तो ये तर्क है कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना जिसने कथित तौर पर पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया हो. राजस्थान सरकार में मंत्री अशोक चंदना द्वारा सचिन पायलट पर हालिया हमला भी दिखाता है कि उनके पास कम समर्थन है.