राजनीति

Democracy vs Dictatorship: क्या लोकतंत्र से बेहतर है तानाशाह सरकार ?

नई दिल्ली। जब भी यह सवाल सामने आता है कि, लोकतांत्रिक सरकार और तानाशाह में क्या बेहतर है तो आप बिना झिझक के कह सकते हैं कि, लोकतांत्रिक सरकार से बेहतर कुछ भी नहीं है। लेकिन क्या ऐसी परिस्थितियां भी बन सकती हैं कि, तानाशाह सरकार को लोकतंत्र से बेहतर कहना पड़े।
हां यह सुनने में भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन कुछ लोकतंत्र किसी तानाशाह सरकार से भी बदतर नज़र आते हैं। आईये इस सम्बन्ध में आपको समझाते हैं।

क्या ऐसा होता है लोकतंत्र?

लोकतांत्रिक सरकार का अर्थ होता है जनता द्वारा, जनता के लिए चुनी गई सरकार लेकिन क्या केवल मत डालने भर से लोकतंत्र की सभी शर्तें पूरी हो जाती हैं नहीं, बल्कि वोट डालने के बाद ही लोकतंत्र की असली कसौटी आरम्भ होती है। नीति निदेशक तत्वों का पालन, संघवाद का दुरुपयोंग या सदुपयोग, संविधान संशोधन द्वारा बदले की राजनीति जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनके दुरुपयोग के बाद एक लोकतांत्रिक सरकार तनाशाह से भी बदतर नज़र आती है।
देश में मध्यमवर्गीय जनता का मुख्य काम नौकरी या छोटा मोटा कारोबार होता है, ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहाँ हथकरगा उद्योग आगे चलकर मल्टीनेशनल कम्पनी के रूप मे निकलकर सामने आए हैं, लेकिन जब लोकतांत्रिक सरकारे इन उद्योगों को पनपाने से अपने हाथ खींच लें और नौकरी के नाम पर कम पैसों की दाहाड़ी के नाम पर केवल शोषण होता है तब आम जन के मस्तिष्क में वोट नहीं सिर्फ खाना, कपड़ा और मकान ही आता है, फिर उसे मतलब इस बात से नहीं होता कि, देश की सत्ता किस हाथ में है बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना और जीने के लिए पर्याप्त संसाधनों का मौजूद होना ही रह जाता है।

क्या तानाशाह सरकार ने किया है उद्धार?

यदि आज हम चीन एवं रूस की बात करें तो इन देशों में विपक्ष की कोई जगह नहीं हैं, सीधे तौर पर इन दोनों देशों की सरकारों को तानाशाह कहा जाता है मौजूदा समय मे चीन में हो रहे विरोध को लेकर भी लगातार यही कहा जा रहा है कि तानाशाह सरकार का अंत होगा। बिल्कुल तानाशाह सरकार का अंत होना चाहिए लेकिन किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को इस तानाशाह देश चीन से भी सबक लेना चाहिए कि, जिसने अपने देश के हथकरगा उद्योगों को इतना बढ़ावा दिया कि आज विश्व की सबसे बड़ी मार्केट मे चीन की हिस्सेदारी होती है, लगभग आधा विश्व चीन के उत्पादों पर निर्भर करता है।
एक समय मे चीन को बेरोज़गारों का गोदाम कहा जाता था लेकिन समय बदल गया आज इलेक्ट्रानिक से लेकर हस्तकला, एवं अन्य सभी वर्गों के उत्पादों को जीन की जनता तैयार करके विदेशों तक पहुंचाने का कार्य करती है।
मैं अपनी बात को फिर दोहराना चाहूंगा कि, तानाशाह सरकार का मैं पक्षधर नहीं हूं लेकिन जिस तरह की लोकतांत्रिक सरकार का ज़िक्र मैने ऊपर किया है, यदि किसी लोकतांत्रिक देश का हाल वैसा ही है तो बेहतर है कि, वहां का नागरिक चीन जैसे तानाशाह देश की नागरिकता लेकर वहां रोजगार करे और भुखमरी से दूर रहे।

Farhan Uddin Siddiqui

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