Rahul Gandhi congress manifesto: 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को पार्टी का मेनिफेस्टो जारी कर दिया. इसमें कहा गया कि सत्ता में अगर कांग्रेस की वापसी हुई तो जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया जाएगा और न्याय स्कीम से तहत गरीबों को सालाना 72000 रुपये दिए जाएंगे.
नई दिल्ली. कांग्रेस चीफ राहुल गांधी ने मंगलवार को 2019 लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के मेनिफेस्टो का ऐलान किया. राहुल ने वादा किया कि अगर कांग्रेस दोबारा सत्ता में आती है तो वह शिक्षा का मौजूदा बजट 4.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर देंगे. यह न्यूनतम आय योजना (NYAY) के बाद राहुल गांधी का दूसरा बड़ा ऐलान है. न्यूनतम आय योजना में गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये दिए जाएंगे. लेकिन इसका गणित भी उतना आसान नहीं है, जितना लग रहा है. खैर उसकी बात फिलहाल नहीं करेंगे. न्याय योजना पर जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च किया जाएगा. दोनों स्कीमों से जीडीपी पर 4 प्रतिशत का अतिरिक्त भार पड़ेगा. आइए आपको बताते हैं कि मेनिफेस्टो में राहुल गांधी क्या बताना भूल गए.
जीडीपी और खर्च: सरकार का खर्च जीडीपी से आंका जाता है. यानी सरकार के पास बजट होता है और उसी में से सरकार अलग-अलग चीजों पर खर्च करती है. ध्यान रहे कि जीडीपी देश में पैदा हो रहे सामान और सुविधा की वैल्यू है. इसका ज्यादातर हिस्सा प्राइवेट संस्थाओं के हाथों में है. इसमें से भारत के लोगों को आय या सैलरी मिलती है.
अगर सरकार को 100 रुपये खर्च करने हैं, चाहे वह टीचरों की सैलरी के लिए हो या स्कूल बनाने के लिए तो उसके पास इतना पैसा होना चाहिए. जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च का मतलब है- किसी अन्य चीज पर सरकार कम खर्च करेगी, लोगों को ज्यादा टैक्स चुकाना होगा और सरकार को पैसा उधार लेना होगा. सवाल यह नहीं कि गरीब के पास पैसा नहीं होना चाहिए या अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजना चाहिए. सवाल है कि सरकार के पास पैसा आएगा कहां से?
राहुल गांधी ने मेनिफेस्टो जारी करते हुए यह नहीं बताया कि क्या जीएसटी की दरें बढ़ाई जाएंगी, क्या इनकम टैक्स या कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो हर स्रोत से अतिरिक्त अपेक्षित राजस्व कितना होगा.अगर ज्यादा खर्च से संसाधन हासिल हो रहे हैं तो यह खतरा नहीं कि खर्च में कैसी कटौती होगी. लेकिन ऐसे में पूंजीगत खर्च में कटौती होगी. अतीत में तो ऐसा ही होता आया है.
क्या राहुल गांधी वित्तीय समेकन के दूसरे रास्ते का प्रस्ताव दे रहे हैं?
न्याय और शिक्षा पर 6 प्रतिशत खर्च से सरकार का व्यय जीडीपी के 4 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा. अगर कांग्रेस सत्ता में आती है और न तो खर्च में कटौती करती है और न ही टैक्स बढ़ाती है तो उसे आज के उधार के बराबर अतिरिक्त राशि उधार लेनी होगी या फिर उससे भी ज्यादा. अधिक राजकोषीय घाटे के साथ जुड़े जोखिमों में बड़ा चालू खाता घाटा शामिल है क्योंकि देश ज्यादा खर्च करता है. इससे रुपये पर दबाव पड़ता है, महंगाई और ब्याज दरों में भी उछाल आता है.
वहीं जहां तक शिक्षा पर खर्च की बात है तो यहां कई सवाल उठते हैं? क्या शिक्षा पर मौजूदा खर्च हमें वैल्यू फॉर मनी दे रहा है. एक हालिया अध्ययन के मुताबिक हर साल प्रति छात्र गुजरात में 47, 044 रुपये, केरल में 39,267 रुपये और यूपी में 23,012 रुपये खर्च हो रहे हैं. सरकारी स्कूल प्राइवेट की तुलना में ज्यादा खर्च तो कर रहे हैं लेकिन स्टूडेंट्स को सीखने का माहौल नहीं दे पा रहे. दूसरे शब्दों में कहें, पैसा तो खर्च हो रहा है लेकिन बेहतर होगा कि खर्च बढ़ाने से पहले हम देखें कि उसे और अच्छे से खर्च कैसे किया जा सकता है.