दलित संगठनों द्वारा सोमवार को बुलाए गए भारत बंद की आग में देश के कई राज्य झुलस गए. इस मामले में अफसरों पर केस दर्ज कराने वाले महाराष्ट्र के भास्कर गायकवाड़ भी मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ठीक नहीं था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भास्कर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे. बताते चलें कि सोमवार को देश के कई राज्यों में भारत बंद के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आईं, इनमें 9 लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए.
पुणेः एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ देश में भारत बंद के नाम पर सोमवार को अराजकता का घिनौना खेल खेला गया. दलित समुदाय के गुस्से को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका भी दाखिल कर दी. सभी के जेहन में यह बात कौंध रही है कि आखिर इसकी शुरूआत कहां से हुई, तो बता दें सुप्रीम कोर्ट ने बीती 20 मार्च को यह फैसला एक सरकारी अफसर पर दर्ज केस को हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया था. दलित समुदाय के हल्ला बोल के बाद अफसरों पर FIR दर्ज कराने वाले महाराष्ट्र के भास्कर गायकवाड़ भी मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ठीक नहीं था. भास्कर ने भी इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है.
टाइम्स ग्रुप की खबर के अनुसार, पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में कार्यरत भास्कर कहते हैं कि आरोपी पक्ष ने अदालत के सामने FIR की कॉपी का गलत अनुवाद किया, जिस वजह से केस में ऐसा मोड़ आया. FIR में कई ऐसी बातें थीं जो शिकायत का मूल थीं लेकिन इन्हें कोर्ट के सामने नहीं रखा गया. भास्कर ने कहा, ‘ओरिजिनल FIR मराठी भाषा में थी. जब कोर्ट में उसका अनुवाद पेश किया गया तो उसमें शुरूआत के तीन पैराग्राफ गायब कर दिए, जिनमें यह स्पष्ट था कि शिकायत क्यों की जा रही है.’ बताते चलें कि सोमवार को देश के कई राज्यों में भारत बंद के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आईं. इसमें 9 लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए.
ये था मामला
भास्कर ने आरोप लगाया कि कराड के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फार्मेसी में कार्यरत रहते हुए तत्कालीन प्रिंसिपल ने कुछ गड़बड़ी करने के बाद उनसे रिकॉर्ड्स दोबारा लिखने के लिए कहा. उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद उनकी सालाना गोपनीय रिपोर्ट में उनके खिलाफ नेगेटिव कमेंट्स किए गए. भास्कर ने दो अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया. केस की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने जब अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी तो उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया. इस पर वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज करा दिया गया. आरोपियों को जब इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली तो वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के आदेश दे दिए. जिसके बाद इस मामले में राजनीति शुरू हो गई और 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया.
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