Priyanka Gandhi Varanasi Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के चुनाव ना लड़ने को लेकर कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा और राजीव शुक्ला की सफाई में विरोधाभास है. प्रियंका गांधी के बनारस से लड़ने का माहौल बनाकर पीछे हटने पर या तो सैम पित्रोदा झूठ बोल रहे हैं या राजीव शुक्ला. सैम पित्रोदा एक तरफ राहुल गांधी का बचाव करके इस फैसले को प्रियंका गांधी के माथे डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ राजीव शुक्ला कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी तो बनारस से लड़ने को तैयार बैठी थीं, राहुल गांधी ने उनके बदले अजय राय को लड़ा दिया. ऐसा लग रहा है कि बनारस में पीएम मोदी के खिलाफ लड़ने को लेकर भाई-बहन और गांधी परिवार में मतभेद हैं जिसे सैम पित्रोदा और राजीव शुक्ला सामने ला रहे हैं. माहौल ऐसा ही रहा तो कांग्रेस के अंदर राहुल गांधी गुट और प्रियंका गांधी गुट बनते देर नहीं लगेगी और फिर भाई और बहन के कैंप में शामिल होकर अपना नंबर बढ़ाने के लिए परेशान नेता एक-दूसरे को लड़ाने-भिड़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.
नई दिल्ली. बनारस और काशी के नाम से मशहूर वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी कैंडिडेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन और पूर्वी उत्तर प्रदेश की महासचिव प्रियंका गांधी के चुनाव ना लड़ने से सोनिया गांधी के परिवार में भाई और बहन के बीच राजनीतिक मतभेद की चर्चा सिर उठाने लगी है. गांधी-नेहरू परिवार में दरार के संकेत देने वाले लोग भी खुद गांधी परिवार के भरोसेमंद कांग्रेसी सिपहसलार हैं. एक हैं राजीव गांधी के जमाने से कांग्रेस के साथ रहे और हाल के दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सलाहकार बनकर उभरे सैम पित्रोदा तो दूसरी तरफ सोनिया गांधी के विश्वासपात्र और पत्रकार से कांग्रेस के नेता बने राजीव शुक्ला.
बनारस से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने पर सैम पित्रोदा और राजीव शुक्ला दो तरह की बात कर रहे हैं और ये जो दो बातें हैं वो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि नरेंद्र मोदी से प्रियंका गांधी की भिड़ंत पर भाई-बहन एक पेज पर नहीं हैं. प्रियंका गांधी के बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ने की हवा बनाकर भागने की वजह पर सैम पित्रोदा या राजीव शुक्ला में कोई एक झूठ बोल रहा है. सच्चा कौन है और झूठा कौन, ये सिर्फ सोनिया गांधी के परिवार को पता होगा. हुआ क्या है, ये समझ लीजिए.
शुक्रवार को प्रियंका गांधी के बनारस से नहीं लड़ने पर सबसे पहले सैम पित्रोदा बोले. बोले कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी पर छोड़ दिया था. प्रियंका गांधी ने ये फैसला खुद लिया है कि चुनाव लड़कर एक सीट में उलझने के बदले खुद को पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल की दी गई जवाबदेही को जिम्मेदारी से निभाएं. मतलब ये कि प्रियंका गांधी बनारस से नहीं लड़ीं तो ये फैसला प्रियंका गांधी का है और इस फैसले से राहुल गांधी का कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि उन्होंने तो ये फैसला करने और लेने का हक प्रियंका गांधी को दे दिया था.
इसी कहानी का दूसरा पहलू राजीव शुक्ला के पास है जो कांग्रेस की रेगुलर ब्रीफिंग में पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहने लगे कि प्रियंका गांधी तो लड़ने के लिए तैयार थीं लेकिन पार्टी हाईकमान ने अजय राय को लड़ाने का फैसला किया. राजीव शुक्ला ने कहा कि प्रियंका गांधी के वहां से लड़ने की खबर से बीजेपी के लोग डरे हुए थे और प्रियंका गांधी बनारस से लड़ने के लिए तैयार थीं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वहां पांच साल से काम कर रहे कार्यकर्ता अजय राय को लड़ाने का फैसला किया.
सैम पित्रोदा राजीव गांधी के दोस्त रहे हैं और उनके जमाने से कांग्रेस में गांधी परिवार के करीबी हैं. राजीव शुक्ला भी सोनिया गांधी के करीबी हैं. दोनों कांग्रेस नेतृत्व के आस-पास नजर आने वाले सलाहकार हैं. प्रियंका गांधी बनारस से क्यों नहीं लड़ीं, इस पर अगर सैम पित्रोदा और राजीव शुक्ला दो तरह की बात कर रहे हैं तो ये मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि या तो सैम पित्रोदा गलत बोल रहे हैं या राजीव शुक्ला. या तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से इन लोगों की बात नहीं होती या फिर राहुल और प्रियंका की आपस में बात नहीं होती.
अगर राहुल और प्रियंका ने मिलकर बनारस से ना लड़ने का फैसला किया है तो शुक्ला और पित्रोदा दोनों की सफाई और कहानी एक जैसी होती. यहां तो सैम पित्रोदा फैसला प्रियंका गांधी के माथे पर डाल रहे हैं तो राजीव शुक्ला राहुल गांधी के. दोनों में सच कौन बोल रहा है ये राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या सोनिया गांधी को ही पता होगा. पर पित्रोदा और शुक्ला ने इतना तो बता ही दिया है कि बनारस, बीजेपी और नरेंद्र मोदी से लड़ने के तौर-तरीके पर गांधी परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है.
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये किसी भी तरह से इनखबर का नजरिया नहीं है)