नई दिल्ली, JDU कोटे से मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आरसीपी सिंह ने बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया, क्योंकि गुरुवार को उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. जेडीयू ने इस बार आरसीपी सिंह के राज्यसभा नहीं भेजा है, ऐसे अब उनकी नई भूमिका को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि न ही आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री रहे और न ही जेडीयू में कोई खास जगह उनके लिए बची है. ऐसे में आरसीपी सिंह आगे क्या सियासी राह चुनेंगे इसपर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है.
नौकरशाह से सियासत में आए रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर सियासत में आगे बढ़े. आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार एक ही जिले और एक ही जाति से आते हैं, ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती गहरी होती गई और आरसीपी सिंह देखते ही देखते नीतीश के आंख-नाक-कान-हाथ बन गए.आरसीपी सिंह पार्टी में एक समय नीतीश के बाद नंबर दो की हैसियत रखते थे. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन तीसरी बार उन्हें राज्यसभा का जाने मौका नहीं मिला, जिसके चलते मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
नीतीश कुमार की मनमर्जी पर आरसीपी का सियासी भविष्य संवरता गया, जब नीतीश ने जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसीपी सिंह ने ही पार्टी की बागडोर थामी, लेकिन जैसे ही मोदी कैबिनेट में शामिल होकर दिल्ली की सियासत में खुद को आरसीपी ने स्थापित करने की कोशिश की, वैसे ही नीतीश कुमार ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली और यही वजह थी कि आरसीपी सिंह को तीसरी बार राज्यसभा पहुंचने का मौका नहीं मिल सका.
बता दें कि नीतीश-आरसीपी की दो दशक की दोस्ती में खटास उस समय आई जब जेडीयू ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में दो सीटों की मांग रखी थी, लेकिन आरसीपी सिंह मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने की जल्दबाजी में एक ही मंत्री पद पर मान गए. हालांकि, आरसीपी सिंह यह दावा करते रहे कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति से उन्होंने केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन ये बात तो साफ है कि उनके केंद्र में मंत्री और ललन सिंह के पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से जेडीयू में उनकी जगह सिकुड़ती गई.
आरसीपी सिंह ने कभी भी पार्टी या फिर नेतृत्व के खिलाफ न तो प्रत्यक्ष रूप से कोई काम किया और न ही किसी तरह की कोई बयानबाज़ी की. केंद्र में मंत्री रहते हुए दिल्ली की राजनीति में आरसीपी सिंह अपनी अलग छवि बनाने की कवायद करते रहे तो वहीं जेडीयू में उनकी विरोधी ताकतें मज़बूत रही.
इसके साथ ही, आरसीपी सिंह ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर पार्टी के स्टैंड से दूरी बनाए रखी जबकि नीतीश कुमार दशकों से इसके प्रबल समर्थक रहे हैं. इस तरह आरसीपी का सियासी ग्राफ नीतीश की नजर में डाउन हुआ, जिसके चलते अब जेडीयू के राम को ‘सियासी वनवास’ का सामना करना पड़ रहा है.
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