नई दिल्ली, 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल फूंकने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है, इसी कड़ी में बुधवार यानी आज भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया, जिसके तहत संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और […]
नई दिल्ली, 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल फूंकने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है, इसी कड़ी में बुधवार यानी आज भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का नए सिरे से गठन किया, जिसके तहत संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया गया तो कई नए चेहरों को बोर्ड में शामिल किया गया. इस फैसले को महाराष्ट्र और केंद्र में बड़े सियासी बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि एक तरफ चर्चित केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को उनके डिमोशन के रूप में देखा जा रहा है तो वहीं देवेंद्र फडणवीस की एंट्री उनका कद बढ़ने की ओर इशारा करती है.
इससे पहले भी गोवा और बिहार जैसे राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारी संभाल चुके देवेंद्र फडणवीस को नेतृत्व प्रमोट कर चुका है, लेकिन अब केंद्रीय चुनाव समिति में जगह देकर ये साफ किया गया है कि फडणवीस का दायरा अब महाराष्ट्र से बाहर भी है और भाजपा में भी उनका राष्ट्रीय कद है, वो सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं हैं. यही नहीं फडणवीस को आज ही महाराष्ट्र विधानपरिषद का नेता भी घोषित किया गया है, लेकिन नितिन गडकरी के साथ ऐसा नहीं है और वह अब सिर्फ केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री ही हैं, दरअसल भाजपा में उनके पास कोई पद नहीं है और न ही वह किसी राज्य के प्रभारी हैं. इससे ये तो साफ है कि नितिन गडकरी का सियासी रसूख पहले जैैसा नहीं रहा है.
बता दें कि नितिन गडकरी लंबे समय से भाजपा में साइडलाइन किए जा रहे हैं, बात पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव की हों या फिर इसी साल यूपी समेत 5 राज्यों के चुनाव की हो, वह कहीं भी प्रचार या फिर अन्य किसी भूमिका में भी नहीं देखे गए थे. संसदीय बोर्ड में बदलाव करते हुए भाजपा की ओर से यह तर्क दिया गया है कि किसी भी सीएम को इसमें जगह नहीं दी गई है, ऐसे में शिवराज सिंह चौहान का हटाना तो समझ आता है लेकिन गडकरी को हटाना वाकई चौकाने वाला है. इसकी वजह यह है कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों को संसदीय बोर्ड में शामिल करने की परंपरा रही है, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने के बाद ही यह परंपरा टूट गई थी. वहीं नितिन गडकरी की गिनती मौजूदा सियासत के सक्रिय नेताओं में होती है, ऐसे में उनका बाहर किया जाना चौंकाता जरूर है. फिलहाल नितिन गडकरी की ओर से इस मामले पर कोई भी टिप्पणी नहीं की गई है.
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