मुंबई: राजनीति पूरी तरह से संभावनाओं का खेल है जहां किसी भी चीज़ का कोई अंत नहीं ही. महाराष्ट्र की सियासत में ये लाइन खूब बैठती है खासकर शरद पवार के साथ जिनकी भतीजे अजित पवार ने NCP से बगावत करते हुए NDA से हाथ मिला लिया है. अजित पवार ने रविवार को पार्टी में […]
मुंबई: राजनीति पूरी तरह से संभावनाओं का खेल है जहां किसी भी चीज़ का कोई अंत नहीं ही. महाराष्ट्र की सियासत में ये लाइन खूब बैठती है खासकर शरद पवार के साथ जिनकी भतीजे अजित पवार ने NCP से बगावत करते हुए NDA से हाथ मिला लिया है. अजित पवार ने रविवार को पार्टी में विधायकों और मंत्रियों को अपने समर्थन में लेते हुए शिंदे गुट से हाथ मिला लिया. दूसरी ओर कद्दावर की छवि रखने वाले शरद पवार को अब अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है जहां वह इस समय उन्हीं लोगों से अपमान झेल रहे हैं जिन्हें कभी शरद पवार ने संरक्षण देकर बढ़ाया था.
इस बीच बड़ा सवाल ये भी है कि क्या शरद पवार 83 की उम्र में विपरीत परिस्थितियों को चुनौती दे पाएंगे। इतना ही नहीं एक चुनौती महाराष्ट्र में साहेब वाले कद के रूप में उभरने की भी होगी. भले ही अजित पवार की बगावत ने शरद पवार की चुनौती बढ़ा दी हो लेकिन इस समय NCP और कांग्रेस के विलय की संभावना भी बढ़ गई है. संभावना है कि एनसीपी का कांग्रेस में विलय हो सकती है जहां सोनिया गांधी भी अब राजनीति से स्पष्ट रूप से बाहर निकल चुकी हैं. बता दें, 1999 में कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार ने NCP का निर्माण किया था. उस समय उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल को आधार बनाते हुए कांग्रेस छोड़ दी थी. हालांकि उसके बाद एनसीपी और कांग्रेस ने सत्ता भी साझा की थी.
2019-20 के दौरान भी एनसीपी को कांग्रेस में विलय करने के विचार पर कई बार चर्चा की जा चुकी है. उस दौर में राहुल गांधी जब AICC प्रमुख हुआ करते थे तो राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय (महाराष्ट्र) स्तर पर नेतृत्व के मुद्दे पर बातचीत विफल हो गई थी. ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय पवार सुप्रिया को उभारना चाह रहे थे जो उस समय NCP के अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल की मौजूदगी में कठिन था. विलय की बातचीत काफी गहरी थी जो दो कारणों से विफल हो गए. जिसमें से एक कारण संपत्तियां जैसे पार्टी भवन, पार्टी, परिवार संचालित ट्रस्ट और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान थीं.