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Narendra Modi Upper Caste Reservation: नरेंद्र मोदी ने गरीब सवर्णों को आरक्षण का फैसला नोटबंदी की तरह झटके में लिया, फरमान पर एक्शन में आए मंत्री

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की तरह सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण देने का फैसला भी एक झटके में लिया. ना कानून मंत्रालय, ना सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और ना ही बड़े कैबिनेट मंत्रियों को इस बारे में पहले से कोई भनक थी. कैबिनेट में लाने से एक-दो दिन पहले पीएमओ से सिर्फ सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को बताया गया कि इस तरह का एक प्रस्ताव तैयार करके सोमवार को कैबिनेट में लाना है. पीएम मोदी ने ये फैसला तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार के बाद सवर्णों की नाराजगी के फीडबैक के बाद लिया. उन्हें ये भी फीडबैक मिला कि पिछ़ड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा और पिछड़ों का वोट, खास तौर से छत्तीसगढ़ में, काग्रेस एकमुश्त पाने में कामयाब रही.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने पीएमओ के फरमान पर आनन-फानन में एक-दो दिन में प्रस्ताव तैयार किया और सोमवार को कैबिनेट के सामने रख दिया. कैबिनेट बैठक में मंत्रियों को समझाने के लिए बड़े वकील के तौर पर भी मशहूर वित्त मंत्री अरुण जेटली और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को आगे किया गया. उन्होंने मंत्रियों को समझाया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में 60 परसेंट आरक्षण के संविधान संशोधन के टिकने पर ज्यादा सवाल पूछे जाने लगे तो बताते हैं कि पीएम मोदी ने ये कहकर बहस को बंद कराया कि वकील और कोर्ट का काम उनको करने दीजिए, सरकार और संसद अपना काम करेगी. संविधान संशोधन का मसौदा कैसे आपात स्तर पर अंतिम समय तक तैयार किया गया इसकी एक झलक लोकसभा में तब दिखी जब बिल पेश करने के बाद खुद मंत्री थावरचंद गहलोत ही वोटिंग के वक्त अपने मसौदे में संशोधन का प्रस्ताव पेश कर उसे पास करा रहे थे.

1990 में तत्कालीन प्रधानमत्री वीपी सिंह ने भी एक दशक पुरानी बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट की सिफारिशों को इसी तर्ज पर अचानक लागू किया था जिससे देश में ओबीसी यानी पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 27 परसेंट आरक्षण मिला था. माना गया था कि उस वक्त भी वीपी सिंह पर चुनावी राजनीति का दबाव था. हुआ यूं था कि ओम प्रकाश चौटाला को दोबारा हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाने को लेकर तत्कालीन डिप्टी पीएम देवीलाल और पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह में ठन गई थी और वीपी सिंह ने देवीलाल को डिप्टी पीएम पद से हटा दिया था.

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उसके बाद देवीलाल ने 9 अगस्त, 1990 को रैली बुला ली थी और उसमें बहुत ज्यादा भीड़ जुटने वाली थी जिसमें बीएसपी संस्थापक कांशीराम भी पहुंचने वाले थे. तब वीपी सिंह को शरद यादव और कुछ नेताओं ने सलाह दी कि यही मौका है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया जाए नहीं तो देवीलाल उन पर भारी पड़ जाएंगे. उसके बाद वीपी सिंह ने 6 अगस्त, 1990 की कैबिनेट बैठक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का फैसला लिया. उनके बाद 1991 में कांग्रेस की सरकार के पीएम नरसिम्हा राव ने भी सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण का एक आदेश जारी किया था लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 1992 में इंदिरा साहनी केस में खारिज कर दिया.

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Aanchal Pandey

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