नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद लैंड सूट मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने के बाद दोपहर 1 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने कहा कि विवादित स्थल राम जन्मभूमि न्यास में जाएगा, जबकि मुस्लिम पक्षकारों को 5 एकड़ उपयुक्त भूमि कहीं और मिली है. एससी ने कहा कि पुरातत्व खुदाई से पता चलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक अंतर्निहित संरचना थी जो इस्लामी मूल की नहीं थी. इस पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एकता का आह्वान करते हुए कहा, चाहे कोई भी धर्म हो, हम सभी भारत के नागरिक हैं. हमें एकजुट होकर रहना चाहिए. उन्होंने कहा, निर्णय को जीत या हार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अपने उत्सव को सात्विक होने दें. हमें अतीत के बारे में सब कुछ भूल जाना चाहिए, हमसे हमारे कर्तव्यों का पालन करना चाहिए.
मोहन भागवत ने पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान उन्हें स्पष्ट रूप से कहा कि लोगों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करना होगा. उन्होंने कहा कि वह फैसले का स्वागत करते हैं. मीडिया के सवालों पर उन्होंने कहा, हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हैं. यह मामला दशकों से चल रहा था और यह सही निष्कर्ष पर पहुंच गया है. इसे जीत या हार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. हम सभी के प्रयासों का भी स्वागत करते हैं. समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए. मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया और कहा कि इसने विवाद को हमेशा के लिए हल करने का मार्ग प्रशस्त किया है. बता दें कि प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली के झंडेवालान में केशव कुंज परिसर में शीघ्र ही प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था.
आज शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुझाव देने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि खाली पड़ी जमीन पर बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया था. आगे कहा गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) यह नहीं सह सकता है कि विवादित स्थल पर 12 वीं शताब्दी का मंदिर था. भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट ने इसके अवशेष को छोड़ दिया है क्योंकि बाबरी मस्जिद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एक हिंदू मंदिर था. सीजेआई रंजन गोगोई ने फैसले को पढ़ते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि भूमि का शीर्षक केवल कानूनी सिद्धांत होना चाहिए. शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े द्वारा दायर किए गए मुकदमों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि राम जन्मभूमि के कानूनी व्यक्तित्व को चुनौती देते हुए कोई सबमिशन नहीं किया गया. अयोध्या के फैसले ने एक सदी पुराने विवाद को खत्म कर दिया, जिसका अयोध्या के निवासी ने स्वागत किया है.
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