शुक्रवार को विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगा. लेकिन उसका गिरना तय है. यह बात विपक्ष को बखूबी मालूम है, मगर फिर भी वह यह कदम उठा रहा है. आइए आपको विपक्ष की इस रणनीति का गणित समझाते हैं.
नई दिल्ली. ये सबको पता है कि लोकसभा में 20 जुलाई को नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी, कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद जब वोटिंग होगी तो उसके बाद मोदी मीडिया के सामने विक्ट्री साइन बनाते हुए ही आएंगे. सांसदों का बहुमत बीजेपी के पास है, एनडीए उनके पास बोनस नंबर है फिर भी हार तय जानकर विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया. क्या है इसके पीछे की रणनीति ? क्या है नफा- नुकसान का गणित, ये हम आपको बताते हैं.
ये सच है कि आंकड़े झूठ नहीं बोलते और किस पार्टी के संसद में कितने सांसद हैं वो सबके सामने है. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पूछे गए सवाल पर सोनिया गांधी का ये जवाब कि- किसने कह दिया कि हमारे पास नंबर्स नहीं हैं- महज पॉश्चरिंग है. हकीकत तो यही है कि विपक्ष के पास नंबर ही नहीं हैं लिहाजा अविश्वास प्रस्ताव गिरना सौ फीसदी तय है.
दरअसल अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा पर पूरे देश की नजर रहेगी. तमाम न्यूज़ चैनलों पर इसका लाइव प्रसारण होगा. ऐसे में विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का इससे बढ़िया मौका भला कहां मिलेगा. इस दौरान विपक्षी नेता वे तमाम मुद्दे उठाएंगे, उन मसलों पर सरकार को घेरने की कोशिश करेंगे- जिन पर उन्हें हंगामे और स्थगन की वजह से संसद में बोलने का मौका कई बार नहीं मिल पाता. मोदी पर सदन में हमला बोलने से देश भर की नजरें उन पर टिकेंगी और मनोवैज्ञानिक रूप से इसका फायदा उन्हें मिलेगा.
इसी बहाने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लाइक माइंडेड दलों और रीजनल पार्टियों की नब्ज टटोलना भी इसका एक मकसद है. सरकार से नाराज सहयोगी दलों पर डोरे डालना, सरकार के नाराज सांसदों पर नजर- ये सारी बातें हैं जो विपक्ष की रणनीति का हिस्सा हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी आरएलएसपी के अलावा अपना दल जैसी एनडीए पार्टियां कुछ समय से नाराज चल रही हैं. शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बीजेपी सांसद पार्टी से खफा चल रहे हैं.
विपक्ष लोगों को ये संदेश देना चाहता है कि एनडीए अब बिखर रहा है. इतना ही नहीं, वो पार्टियां जिनका रुख साफ़ नहीं है, वो पेशोपेश में हैं कि किनके साथ जाएं, विपक्ष की नजर उन पर भी है- जैसे बीजू जनता दल, एआईयूडीएफ और इनेलो. विपक्ष ऐसे मुद्दे को पकड़ना चाहता है जिन पर ज्यादा से ज्यादा पार्टियों का साथ मिले. वहीं मोदी सरकार की कोशिश ये होगी कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को एक अवसरवादी गठबंधन के तौर पर पेश किया जाए जो सिर्फ मोदी विरोध जानते हैं.
विपक्षी दल सिर्फ मोदी के विरोध के नाम पर एकजुट हैं और इसके अलावा उनकी कोई समान विचारधारा नहीं है. सरकार की तरफ से बोलने वाले नेताओं की कोशिश होगी कि वो सरकार की उपलब्धियों के बखान के साथ-साथ अपनी नीतियों और योजनाओं का जमकर प्रचार और गुणगान करें. बीजेपी के पास 273 सांसद हैं जबकि उसे बहुमत के लिए सिर्फ 268 वोट चाहिए.
268 इसलिए क्योंकि लोकसभा में 10 सीट खाली हैं इसलिए सदन की ताकत 543 से घटकर 533 हो गई है तो बहुमत का फिगर भी 272 से घटकर 268 हो गया है. बीजेपी के पास 273 सांसद होने का मतलब है कि मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव गिराने के लिए सहयोगियों की भी जरूरत नहीं है. और सहयोगियों को जोड़ लें तो आंकड़ा 312 का है.
अब 312 सांसदों वाला क्या ही हारेगा, ये पूरे विपक्ष को पता है. लोकसभा में शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा सात घंटे की होगी. इसमें तीन घंटे 33 मिनट तो बीजेपी ही बोलेगी. सहयोगियों को जोड़ दें तो ये समय करीब सवा चार घंटे का हो जाएगा. वहीं करीब एक घंटे से ज्यादा एआईएडीएमके और बीजेडी जैसे दलों को मिलेगा. यानी विपक्ष के हिस्से डेढ़ से पौने दो घंटे आएंगे. तो यहां भी बाजी कहीं सरकार ही न मार ले, सारी तालियां पीएम मोदी ही न बटोर लें.
किसको कितनी देर बोलने का वक्त मिलेगा:
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