मोदी सरकार लोकसभा के साथ-साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना के लिए 2 विकल्पों पर विचार कर रही है. एक साथ चुनाव के लिए केंद्र को संविधान में संशोधन करना पड़ता लेकिन सरकार इससे बचने के रास्ते तलाश रही है. सरकार जिन 2 विकल्पों पर विचार कर रही है, उनमें से पहला यह है कि उन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दी जाए. जहां आम चुनाव के ठीक बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. इस तरह उन राज्यों के चुनाव भी आम चुनाव के साथ करा लिए जाएं.
नई दिल्ली. केंद्र की मोदी सरकार अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत लोकसभा चुनावों के साथ साथ 2018 और 2019 में होने वाले विधानसभा चुनावों को कराने के विकल्पों पर विचार कर रही है. इसके लिए सरकार को दो रास्ते दिख रहे हैं, पहला संविधान में संशोधन करके इसके अमलीजामा पहनाया जाए. दूसरा 2018 में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए. साथ ही जिन राज्यों में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होने है उन राज्यों को समय से पहले विधानसभा भंग कराने के लिए मना लिया जाए ताकि देश में लोकसभा के साथ साथ कई राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जा सके .
बता दें कि 2018 में 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे जिनमें से तीन राज्यों में चुनाव हो चुके हैं. शेष 5 राज्यों कर्नाटक, मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में 2018 में चुनाव होने हैं. इसके अलावा 2019 में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिसा, सिक्किम और तेलंगाना में चुनाव होने हैं.
सरकार में वन नेशन वन इलेक्शन के हिमायती लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान की विधानसभाओं का कार्यकाल दिसंबर में खत्म हो रही है. अत इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. इसके अलावा मिजोरम को भी मनाया जा सकता है. वहीं 2019 में 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं इनमें से अधिकतर में एनडीए की सरकार है तो उन्हें समय से पहले चुनाव कराने के लिए मनाने में आसानी होगी. इस फॉर्मूले से लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए कुल राज्यों की संख्या बढ़ाकर 11 की जा सकती है.
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